एक बार ईसा अपने शिष्यों के साथ कहीं जा रहे थे। उसी समय एक व्यक्ति दौड़ते हुए उनके पास आया और चरणों से लिपटकर बोला, “प्रभु! सच्चा जीवन जीते हुए परमात्मा के पास पहुँचने का क्या साधन हो सकता है।”
ईसा ने कहा, “नम्रता, प्रेम, दया, निरहंकारिता, सत्य, अहिंसा, त्याग आदि परमात्मा को प्राप्त करने के साधन है।”
धनी युवक ने कहा, “प्रभु मैं तो बचपन से ही इन नियमों का पालन कर रहा हूँ।”
ईसा यह सुनकर बड़े प्रसन्न हुए और फिर बड़ी आत्मीयता के साथ बोले, “यह सब होते हुए भी तुझमें एक कमी है, जिसे मैं जानता हूँ। तुम अपने नियमों का तो हमेशा पालन करते रहो। एक बात और करो तुम्हारे पुरुषार्थ और भगवान ने जो तुम्हें दिया उसे तुम जरूरतमंदों को दे दो। इस आदान-प्रदान के शाश्वत नियम का परिपालन करने से ही परमात्मा की प्राप्ति हो सकती है।”
इस आदेश का पालन करने में उस धनी युवक को बड़ी कठिनाई महसूस हुई और वह चुपचाप वहाँ से चलता बना।
ईसा कुछ देर तक उस युवक की ओर देखते रहे। फिर शिष्यों को संबोधित करते हुए बोले, “देखा! संचयी लोगों का परमात्मा के पास पहुँचना कितना कठिन है। वे केवल दोनों हाथों से बटोरना जानते हैं, देना नहीं।”