शिवाजी के गुरु समर्थ रामदास (kahani)

October 2003

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एक संत के पीछे एक आदमी गालियाँ बकता चला जा रहा था। संत बड़े शाँत भाव से अपनी राह चले जा रहे थे। वह सारा इलाका जंगली था। यह इलाका समाप्त होकर जहाँ से बस्ती दिखने लगी, वहीं संत ठहर गए और उस व्यक्ति से बोले, “भाई, मैं यहाँ रुक गया हूँ। अब जितना जी चाहे, मुझे गाली दे दो।”

“ऐसा, क्यों?” उस दुष्ट आदमी से पूछा।

“ऐसा इसलिए भाई कि इस बस्ती के लोग थोड़ा मुझे मानते हैं। उनके सामने तुम मुझे गाली दोगे तो वे तुमको जरूर सजा देंगे।”

“तो इससे तुझे क्या?” उस दुष्ट ने फिर पूछा।

“तुम्हें तंग किया जाएगा तो मुझे बहुत तकलीफ होगी। आखिर तुम इतनी दूर तक मेरे पीछे पीछे आए हो तो मुझे भी तुमसे स्नेह हो गया है।” संत ने प्यार से समझाते हुए कहा।

वह दुष्ट व्यक्ति संत के चरणों पर गिर पड़ा। जानते हो, वह संत कौन था? ये थे शिवाजी के गुरु समर्थ रामदास।


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