वर्जीनिया के एक सुनसान प्रदेश में रेल मार्ग था। रात्रि के समय पहाड़ से बरफीली चट्टानें टूट टूटकर लाइन पर गिरी। गाड़ी आने वाली थी। अंधेरी रात में उसके गिरने का खतरा था।
उस क्षेत्र में एक बुढ़िया रहती थी। चिंतित हुई कि गाड़ी कैसे रुके और दुर्घटना के पास जो चारपाई थी, उसी को तोड़कर रेलवे लाइन पर जलाने लगी और जलती लकड़ियां सिगनल की तरह हिलाती रही। गाड़ी आई। उसने देखा और गाड़ी रोककर उसने दुर्घटना टाल दी। आज भी उसकी प्रतिवर्ष बरसी मनाई जाती है।
एक बार विधाता ने अपना दूत पृथ्वी पर यह पता लगाने के लिए भेजा कि पृथ्वी में स्वर्ग प्राप्ति के योग्य कितने भक्तगण है ?
दूत ने आकर संसार के हजारों भक्तों एवं पुजारियों के नाम पत्ते अपने रजिस्टर में अंकित कर लिए। दूत के विदा होते समय उसे एक अंधा चौराहे पर लालटेन जलाकर खड़ा मिला। दूत ने उसकी ओर कोई ध्यान नहीं दिया।
विधाता ने जब दूत का रजिस्टर देखा तो उसमें उस अंधे का नाम न था। विधाता ने स्वर्ग के सच्चे अधिकारी की परिभाषा बताते हुए, दूत के रजिस्टर को रद्द कर दिया और उस अंधे को स्वर्ग का सच्चा अधिकारी बताया, जो पूजा पाठ तो नहीं करता था, किंतु विश्व व्यवस्था में भगवान का सहयोग कर अंधकार में राहगीरों का मार्ग दर्शन कर रहा था।