मेरी जैसी मूर्खता न करेगा (kahani)

October 2003

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राजा की सेना एक गाँव से होकर गुजरी। सेनापति ने गाँव के मुखिया को बुलाकर पूछा, “घोड़ों को खिलाने लायक सबसे अच्छा खेत किसका है?” मुखिया ने अपना खेत बता दिया। चारा काट लिया गया।

सेनापति ने फिर पूछा, “ये खेत किसके थे?” मुखिया ने कहा, “मेरे। मुझे दूसरों की हानि कराने का क्या अधिकार है।”

सेनापति स्तब्ध रह गए। उन्होंने खेत का मुआवज़ा चुका दिया।

सिकंदर जब मरने लगा तो उसने अपनी सारी बहुमूल्य संपदा आँखों के सामने जमा कराई। मंत्रियों से कहा, “इसे मेरे साथ परलोक भिजवाने का प्रबंध करो।” यह असंभव था। वैभव संसार का अंग है। वह यहीं मिलता है और यहीं छूटता है।

सिकंदर फूट फूटकर रोया। यदि यह सब यहीं पड़ा रहना था, तो मैंने व्यर्थ ही इसके लिए जीवन गंवाया। यदि यह बोध पहले जगा होता तो परमार्थी महामानवों की तरह उपयोगी जीवन बिताता।

समय निकल चुका था। भूल का सुधार संभव न था। सो उसने मंत्रियों से कहा, “जनाजे में उसके खुले हाथ ताबूत के बाहर रखे जाएं, ताकि लोग समझें कि महाबली सिकंदर तक जब खाली हाथ चला गया तो हम क्या साथ ले जा सकेंगे? जिन्हें यह बोध मिलेगा, वह मेरी जैसी मूर्खता न करेगा।”


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