दुःखियों की सेवा (kahani)

November 2000

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नदी के किनारे संत ज्ञानेश्वर जा रहे थे। समीप में ही एक लड़का स्नान कर रहा था। एकाएक लड़के का पैर फिसल गया और वह तेज बहाव में चला गया। लड़का सहायता के लिए चिल्लाया, पर किनारे पर बैठे महात्मा अपने जप में लगे रहे। एक बार डूबते बालक को दिख लिया और फिर आँख बंद कर लीं। संत ज्ञानेश्वर बिना विलम्ब किए नदी में कूद पड़े और डूबते बालक को बाहर खींच लाए। किनारे पर जप कर रहे महात्मा से संत ज्ञानेश्वर ने पूछा, आप क्या कर रहे हैं ? महात्मा ने कहा, जप कर रहे हैं और पुनः आंखें बंद कर लीं। संत ने पूछा, क्या ईश्वर के दर्शन हुए ? महात्मा ने उत्तर दिया, नहीं। मन स्थिर नहीं हो रहा है। संत ज्ञानेश्वर ने कहा, तो उठो पहले दीन-दुःखियों की सेवा करो, उनके कष्टों में हिस्सा बँटाओ, अन्यथा उपासना का कोई विशेष लाभ नहीं मिलेगा। महात्मा को अपनी भूल मालूम हुई कि सच्चा जप तो यह था कि डूबते हुए बच्चे को बचाया जाता। उस दिन से वे महात्मा उपासना के साथ-साथ दीन दुःखियों की सेवा में लग गए।


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