भलाई का मार्ग अपना लिया (kahani)

November 2000

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कवि डेनियल निर्धनों को मिलने वाली सुविधाएँ स्कूल से लेकर आया। उसकी माँ ने कहा, वापस जाओ और इनकार करके आओ। मैं मेहनत-मजदूरी करती हूँ और तुम्हारी फीस तथा पुस्तकें जुटा सकती हूँ। यह सुविधा उनके लिए है जो सर्वथा असमर्थ हैं। हमें असमर्थों की हक नहीं मारना चाहिए।

एक राजकुमार बड़ा अत्याचारी था। राजा ने इस दुर्बुद्धि को सुधारने की बड़ी कोशिश की, लेकिन वह नहीं सुधरा। बुद्ध उसे सुमति देने के लिए स्वयं उनके पास गए। वे उसे नीम के एक पौधे के पास ले गए और बोले, राजकुमार इस पौधे का एक पत्ता चखकर तो बताओ कैसा है ? राजकुमार ने पत्ता तोड़कर चखा। उसका मुँह कडुआहट से भर उठा। उसे तुरन्त थूककर उसने नीम का पौधा ही जड़ से उखाड़ फेंका।

बुद्ध ने पूछा, राजकुमार ! यह तुमने क्या किया ? राजकुमार ने उत्तर दिया, यह पौधा अभी से ऐसा कडुआ है, बढ़ने पर तो पूरा विष-वृक्ष ही बन जाएगा। ऐसे विषैले पेड़ को जड़ से उखाड़ना ही उचित है। बुद्ध ने गम्भीर वाणी में कहा, राजकुमार तुम्हारे कटु व्यवहार से पीड़ित जनता भी यदि तुम्हारे प्रति ऐसी ही नीति से काम ले, तो तुम्हारी क्या गति होगी ? यदि तुम फलना-फूलना चाहते हो, तो उदार, दयावान् और लोकप्रिय बनो। उसी दिन से राजकुमार ने बुराई की राह छोड़ भलाई का मार्ग अपना लिया।


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