साँस्कृतिक महानुष्ठान की महापूर्णाहुति

November 2000

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12 वर्ष पूर्व संस्कृति पुरुष परमपूज्य गुरुदेव के निर्देशन में शुरू किया गया साँस्कृतिक महानुष्ठान आज अपनी महापूर्णाहुति के अंतिम दौर से गुजर रहा है। कुँभ नगरी हरिद्वार के प्रायः चालीस मील की परिधि के क्षेत्र में इसकी व्यापक तैयारियाँ पूरे जोरों पर है। इसके उभर रहे विराट् स्वरूप का विहंगम दूरदर्शन मात्र कितना रोमांचक एवं आश्चर्यचकित करने वाला है, यह तीर्थ नगरी से गुजरने वाला हर व्यक्ति अनुभव कर रहा है और इसके सरेआम जुटाने में लगे परिजनों के हृदय तो विशेष रूप से आह्लादित एवं रोमाँचित है। चहुँओर युग के मत्स्यावतार की विराट् लीला देखते ही बनती है। समूचे वातावरण में युगपरिवर्तनकारी साँस्कृतिक क्राँति की हवा छाई हुई है और इस महानुष्ठान में भाग लेकर धन्यभागी बनने की अंतःप्रेरणा उभर रही है।

महापूर्णाहुति यज्ञ का यह ऐतिहासिक आयोजन गायत्री परिवार के युग संधि महापुरश्चरण की 12 वर्षीय दुर्धर्ष सामूहिक साधना एवं पुरुषार्थ-पराक्रम का चरमोत्कर्ष है। 12 वर्ष के इन विकट समय में विराट् श्रद्धांजलि समारोह, शपथ समारोह, देवसंस्कृति दिग्विजय अभियान के अंतर्गत 18 अश्वमेध महायज्ञ, 800 से अधिक विराट् संस्कार महोत्सव, विराट् वाजपेय यज्ञ जैसे साँस्कृतिक क्राँति का अलख जगाने वाले विशाल आयोजन किए। युगमानस भी संस्कृति के युगानुकूल उपयोगी एवं प्रगतिशील स्वरूप को देखकर इसे अपनाने के लिए आगे बढ़ा है। इस दौरान 250 करोड़ गायत्री मंत्र जप का प्राथमिक लक्ष्य भी बढ़ते-बढ़ते 25000 करोड़ प्रतिवर्ष तक जा पहुँचा है। इसकी महापूर्णाहुति के अंतर्गत तीन चरण पूरे हो चुके व चौथे का अंतिम चरण पूरा होने वाला है।

इसका प्रथम चरण महापूर्णाहुति के पूर्वाभ्यास की सामूहिक साधना एवं दीपयज्ञ आयोजन के रूप में 3 दिसंबर 11 को सारे भारत में एक साथ, एक ही समय संपन्न हुआ। भारत में पोलियो उन्मूलन अभियान के राष्ट्रीय कार्यक्रम के साथ जुड़कर यह जनचेतना जागरण के रूप में रहा। पूरे भारत एवं विश्व में सभी धर्म संप्रदायों एवं पारमार्थिक संगठनों की इसमें भरपूर भागीदारी रही। शारीरिक विकलाँगता के साथ इससे कहीं अधिक भयंकर तनाव, मनोरोगजन्य मानसिक विकलाँगता से भी मुक्ति एवं सबके लिए उज्ज्वल भविष्य की प्रार्थना के साथ यह कार्यक्रम एक लाख स्थानों पर लगभग एक करोड़ व्यक्तियों द्वारा सम्पन्न किया गया। इस सामूहिक आध्यात्मिक प्रयोग से सूक्ष्म जगत् में जो जबरदस्त स्फोट हुआ है, वह निश्चित रूप से सबके उज्ज्वल भविष्य की दिशा में एक ठोस कदम रहा है। अब हर वर्ष 3 दिसम्बर को पीड़ा निवारण दिवस के रूप में मनाया जाएगा।

दूसरा चरण, परमपूज्य गुरुदेव के आध्यात्मिक जन्मदिवस (वसंत पर्व, 10 फरवरी) के पुण्य अवसर पर पूरा हुआ। इस दिन भारत एवं विश्वभर की सभी शाखाओं, धर्मस्थलों, विभिन्न उपासना गृहों, क्लबों, संगठनों एवं शक्तिपीठों में देवसंस्कृति का परिचय करवाने वाले एवं नवयुग की चेतना का अलख जगाने वाला पुरुषार्थ संपन्न हुआ। इसके अंतर्गत 3 दिसम्बर की तरह दीपयज्ञ एवं स्वच्छ-निर्मल मन के साथ स्वस्थ समाज हेतु उज्ज्वल भविष्य की प्रार्थना की गई। इसमें भागीदारी प्रथम चरण से बढ़ी-चढ़ी ही रही, जिससे उत्पन्न आध्यात्मिक ऊर्जा के प्रभाव की कल्पना की जा सकती है।

तीसरे चरण के अंतर्गत (10 फरवरी, 2000 से गायत्री जयंती 11 जून, 2000) एक व्यापक मंथन विभूतियों के स्तर पर चला, जिसमें गाँव से लेकर नगर, जिले तक एवं फिर 105 संभागों के स्तर पर गहन विश्लेषण कर मिशन का संगठनात्मक ढाँचा तैयार किया गया। राष्ट्र के आध्यात्मिक उत्कर्ष एवं प्रतिकूलताओं के शमन हेतु विशिष्ट प्रार्थनाएं की गई। संभागीय महापूर्णाहुतियों से पूर्व सारे राष्ट्र एवं विश्व भर में जागरण यात्राएं चलीं। अकेले भारत में ही चप्पे-चप्पे के प्रसुप्त संस्कारों को जगाने एवं जन-जन में नवचेतना उभारने के लिए 14 रथों द्वारा प्रायः ढाई लाख किमी. की राष्ट्र जागरण तीर्थयात्रा सम्पन्न की गई। 107 संभागीय स्थलों पर हुई पूर्णाहुतियों में राष्ट्र का कोई भी कोना नहीं छोड़ा गया। दक्षिण में जहाँ चैन्नई, बेंगलोर, हैदराबाद में कार्यक्रम हुए, वहीं पूर्वोत्तर में सिलिगुडी, कलकत्ता, वीरगंज, पश्चिम में जम्मू, श्रीगंगानगर जोधपुर में तथा उत्तर में शिमला, पालमपुर, टिहरी, अल्मोड़ा आदि क्षेत्रों में ये पूर्णाहुतियाँ सम्पन्न हुई।

अमेरिका की पाश्चात्य सभ्यता प्रधान धरती पर भी ये यात्राएं सफलतापूर्वक सम्पन्न हुई। पश्चिमी तट पर सानडियागो से बैंकुवर (कनाडा) तथा सिएटल से एरीजोना, ह्यस्टन, टेक्सास से होकर यात्रा का समापन लॉस एंजेल्स में हुआ। इसी प्रकार पूर्वी तट पर शिकागो से आरम्भ होकर अटलाँटा तक एवं फिर पूर्वी छोर से होकर मिशिगन तक ये यात्राएं सम्पन्न हुई है, इसी प्रकार की शृंखलाएं यू.के. दक्षिण एवं पूर्वी अफ्रीका में चल चुकी है। इस प्रकार भारतीय संस्कृति का विस्तार आगामी पाँचवे चरण के समापन तक पूरे विश्व के कोने-कोने में हो जाने की संभावना है।

तीसरे चरण के अनुयाज एवं चतुर्थ चरण के प्रयाज के क्रम में सारे देश के नगरीय, कस्बे, महानगरीय स्तर पर गहन मंथन चला। इससे ढेरों प्रतिभाएं उभरकर सामने आई और नवसृजन के लिए संकल्पित हुई।

चौथे चरण के अंतर्गत विराट् विभूति महायज्ञ जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम, दिल्ली में सम्पन्न हुआ। लगभग सवा लाख ऊर्जस्वी प्रतिभाएं एवं परिजन इसमें भागीदार बने थे। गृहमंत्री लालकृष्ण आडवाणी ने जहाँ प्रतिभावों के पलायन पर चिंता जताई, वहीं गायत्री परिवार के कार्यों की महत्ता को व्यक्त करते हुए कहा, “स्वयंसेवी संस्थाएं सेवा के कार्य करके भारत में अध्यात्म का प्रचार कर सकती है। आध्यात्मिक साधना से उठी ऊर्जा को राष्ट्रोत्थान और जनकल्याण के लिए गायत्री परिवार ने जिन आँदोलनों का सूत्रपात किया है, वे बहुत ही महत्वपूर्ण है।” परिवार के सात रचनात्मक आँदोलन है, साधना, शिक्षा, स्वास्थ्य, स्वावलंबन, पर्यावरण, नारी जागरण, व्यसन एवं कुरीति निवारण। मानव संसाधन मंत्री डॉ. मुरली मनोहर जोशी ने भी शाँतिकुँज के समाज एवं युगपरिवर्तन के लिए किए जा रहे आध्यात्मिक प्रयासों की सराहना की। दैनिक जागरण के संपादक एवं मनीषी नरेन्द्र मोहन देवत्व का प्रत्यक्ष अवतरण होते देख भावविभोर थे और परमपूज्य गुरुदेव के स्वप्न को साकार होते देख रहे थे। वस्तुतः विभूतियों को राष्ट्र, समाज हित एवं नवसृजन के लिए नियोजित करने की दिशा में यह अभूतपूर्व आयोजन था। विद्यमान सभी विचारशील वर्ग एकमत था कि सामाजिक क्राँति के लिए बौद्धिक एवं नैतिक क्राँति का सबल आधार बनाया ही जाना चाहिए।

चौथे चरण का अंतिम चरण महापूर्णाहुति यज्ञ के रूप में नवंबर 6 से 11 के दौरान होने जा रहा है। सृजन संकल्प विभूति महायज्ञ के रूप में यह विशिष्ट अर्थ लिए हुए है, जिसे पिछले अंक में बहुत ही सरल एवं स्पष्ट ढंग से समझाया गया है। इसी तरह इसके सौत्रामणी प्रयोग विधान एवं पुरुषमेध महायज्ञ प्रयोगों का विस्तार से गत दो अंकों में स्पष्ट किया गया है। संक्षेप में सौत्रामणी प्रयोग बुराइयों-पापों से बचाने वाला व प्रतिभा, पराक्रम एवं ऐश्वर्य को बढ़ाने वाला और राष्ट्र की रक्षा करने वाला है। पुरुषमेध महायज्ञ, यजनकर्ता की प्रतिभा, पुरुषार्थ को जगाकर प्रखरतम ऊंचाइयों तक ले जाने वाला है। तथा राष्ट्र की कीर्ति अक्षुण्ण बनाने वाला तथा उसे सर्वोच्च स्तर पर स्थापित करने वाला है। सृजन संकल्प विभूति महायज्ञ के अंतर्गत अपनी विभूति (धन, योग्यता, भाव, प्रतिभा, श्रम, प्रभाव) को जनकल्याण हित सृजन कार्यों में लगाने, अर्पित करने की संकल्पित भागीदारी निहित है।

युग के इस विशालतम साँस्कृतिक महानुष्ठान में 2 करोड़ लोगों की भागीदारी अनुमानित है व इनमें 2 लाख सृजन के लिए संकल्पित-समर्पित विभूतियों एवं प्रतिभाओं का उभरकर आना अपेक्षित है। महापूर्णाहुति के इस यज्ञ से नवयुग के आगमन को सुनिश्चित करेगा, जिसके स्वागत समारोह के रूप में वसंत पंचमी, 2001 का पंचम चरण संपन्न होना शेष है। महापूर्णाहुति के इस समापन के साथ सृजन का नवीन अध्याय खुलेगा।


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