कुछ व्यक्ति एक वटवृक्ष के नीचे बैठे वार्त्तालाप कर रहे थे। सभी दुनिया के झंझटों से परेशान होकर भाग आए थे और साधु होने जा रहे थे। तक एक ने कहा, “हम सब मिलकर जंगल में रहेंगे और तपस्या करेंगे, लेकिन यह तो सोचो कि जब ईश्वर वरदान माँगने को कहेगा, तो माँगोगे क्या ?” दूसरे ने कहा, “अन्न माँगेंगे। उसके बिना जीवित रहना सम्भव नहीं।” तीसरे ने कहा, “बल माँगेंगे। बल के बिना सभी कुछ निरर्थक है।” चौथे ने कहा, “बुद्धि माँगना ज्यादा उचित है। बुद्धि की आवश्यकता प्रत्येक कार्य को करने से पूर्व होती है।” पाँचवा बोला, “ये सब वस्तुएँ तो साँसारिक हैं। आत्मशांति मांगेंगे, जो अंतिम लक्ष्य है मनुष्य का।”
तब पहले व्यक्ति ने कहा, “तुम सब मूर्ख हो। क्यों न हम स्वर्ग ही माँग लें। वहाँ समस्त उपलब्धियाँ एक साथ ही मिल जाएँगी।” यह सुनकर विशाल वटवृक्ष ठहाका लगाता हुआ बोला, “मेरी बात मानो, तुम लोगों से न तपस्या होगी, न उपलब्धियाँ प्राप्त होंगी, क्योंकि यदि इतना ही मनोबल होता, तो संसार से घबराकर न भागते! भगवान् के पास जाने के लिए असाधारण आत्मबल चाहिए, पहले उसकी साधन करो, फिर आगे की बात सोचना।”