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November 2000

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समाज का सहज प्रवाह एक अभ्यस्त ढर्रे के रूप में है। इस ढर्रे को बदलना ही साहसिकता है। मछली धारा को उलटा चीरकर चलती है और ऊपर पहुँच जाती है। धारा प्रवाह में तो शरीर से बलिष्ठ, पर बुद्धि से अल्प हाथी जैसे प्राणी भी बहुत देखे जाते हैं। बुद्धिमत्ता इसी में है कि जो भी अनुचित है, उसे पलट डालने में जरा भी असमंजस न बरतें। इस साहस के अभाव में ही अनीति व्यक्ति पर हावी हो जाती है।


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