समर्थ गुरु रामदास ने शिवाजी को ढूंढ़ निकाला था, तो भी अपने अनुमान को प्रत्यक्ष परखने के लिए सिंहनी का दूध लाने का आदेश दिया और जब आदर्श के लिए उपयुक्त साहसिकता दिखाने की बात सिद्ध हो गई, तो उन्होंने उन्हें वह सब कुछ दिया जो देना चाहिए था। इन्द्र ने अर्जुन को गांडीव देने और महाभारत जिताने की बात सोची किंतु साथ ही उसकी पात्रता जांचने का भी निश्चय किया, अन्यथा कुपात्र को दिए गए अनुदान ग्रहण करने वाले और देने वाले दोनों को ही संकट में फँसाते हैं। कुपात्र भस्मासुर को वरदान देने वाले शिवजी किस प्रकार विपत्ति में फँसे थे और दोनों को कितना त्रास सहना पड़ा, यह सर्वविदित है। विश्वामित्र ने राम-लक्ष्मण को बला-अतिबला विद्या सिखाने पर भगवान् की भूमिका निभा सकने की विशेषता से सम्भव पाया, फिर भी आदर्शों के प्रति यज्ञ रक्षा में सुबाहु, ताड़का, मारीच से निपटने का कष्टसाध्य काम उनके कंधे पर डाल दिया। उत्तीर्ण हुए, तो वे ऋषि आश्रम से भगवान् बनकर ही लौटे।