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Akhand Jyoti
Year 2000
Version 2
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November 2000
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ईश्वर को न किसी से मनुहार चाहिए न उपहार। चरित्रवान ओर लोकसेवी बनकर ही हम उसे प्रसन्न कर सकते हैं।
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Page Titles
संस्कृति पुरुष- परमपूज्य गुरुदेव
VigyapanSuchana
संस्कृति के पुण्य प्रवाह को मिला नवजीवन
आगे की बात सोचना (kahani)
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देव पुरुष का अवतरण
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दुःखियों की सेवा (kahani)
उपनयन संस्कार ने जगाई साधक की अभीप्सा
समग्र रूप से जाना (kahani)
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गुरुदेव परब्रह्म
सिद्ध पुरुष बने (kahani)
पूर्वजन्मों की अनुभूति ने कराया आत्मबोध
संग्राम में महत्त्वपूर्ण भूमिका (kahani)
वेदमाता उनकी चेतना में अवतरित हुई
भलाई का मार्ग अपना लिया (kahani)
श्रद्धा हुई प्रगाढ़ तीन पावन प्रतीकों से
भगवान् बनकर ही लौटे (kahani)
गृहस्थ ही बना एक तपोवन
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देवात्मा हिमालय था उनका अभिभावक
यज्ञमय जीवन से उमंगती तप की ज्वालाएँ
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पुरुषार्थ चतुर्ष्टथ के थे वे साकार भाव विग्रह
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उन्होंने सुनी आर्ष साहित्य की पुकार
गुह्य विद्या और भारतीय विज्ञान का उद्धार
संस्कारों के माध्यम से संस्कृति की प्रतिष्ठा
वयं राष्ट्रे जागृयाम पुरोहिताः
तीर्थ चेतना के उन्नायक
लोक शिक्षण करने वाले परिष्कृत धर्म-तंत्र के स्थापक
जीवन-साधना का एक महत्त्वपूर्ण पक्ष “आत्मवत् सर्वभूतेषु
उदार चरितानाम तु वसुधैव कुटुम्बकम्
लोकनायक-निर्माण की परंपरा का नवोन्मेष
पर्वों को दी चैतन्यता एवं सुसंस्कारिता
कुछ कर सकने योग्य बना (kahani)
ऋषि-परंपराओं को नवजीवन दिया युगऋषि ने
उन्हें ठिकाने लगा दिया (kahani)
विज्ञान व अध्यात्म के समन्वयन ने दिया संस्कृति को नया मोड़
सभी नागरिक समान (kahani)
साँस्कृतिक संवेदना को मिला मूर्त रूप
जड़े ही खोखली हो गई (kahani)
साँस्कृतिक क्राँति के अग्रदूत
नवयुग में संस्कृति पुरुष की चेतना का नवोदय
सबसे बड़ा पुण्य (kahani)
साँस्कृतिक महानुष्ठान की महापूर्णाहुति
अग्निकाँड की दुर्घटनाओं (kahani)
संस्कृति पुरुष की वसीयत और विरासत
एक अद्भुत छाप छोड़ गया विराट् विभूति ज्ञानयज्ञ
त्याग-बलिदान की संस्कृति-देवसंस्कृति
युगपरिवर्तन नवसृजन हेतु पुरुषमेध एवं सौत्रामणी प्रयोग
न केवल इस बढ़े भार को बँटाएँ, सदस्य संख्या भी बढ़ाएँ
सृजन सैनिकों के प्रति भावभरी अभिव्यक्ति (kavita)
ॐ भू र्भुवः स्वः
तत्
स
वि
तु (र्)
व
रे
णि
यं
भ
र्गो
दे
व
स्य
धी
म
हि
धि
यो
यो
नः
प्र
चो
द
या
त्
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