न केवल इस बढ़े भार को बँटाएँ, सदस्य संख्या भी बढ़ाएँ

November 2000

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‘अखण्ड ज्योति’ पत्रिका 86 वर्षों से सतत् प्रकाशित होती रही है। यह परमपूज्य गुरुदेव की प्राणचेतना की संवाहिका है। हाथ से बने कागज पर , हाथ से चलने वाली मशीन की श्रम-साध्य प्रक्रिया से इसकी छपाई गई थी। यह अपनी लंबी यात्रा अनेकानेक व्यवधानों के बावजूद पूरी करती रही है, क्योंकि इसके पीछे इसके प्रति परिजनों का श्रद्धाभाव जुड़ा है। युगऋषि, वेदमूर्ति, तपोनिष्ठ पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी द्वारा कठोर तप के नवनीत द्वारा आत्ममंथन के माध्यम से जो भी कुछ सार निकला, ‘अखण्ड ज्योति’ पत्रिका के रूप में जनाजन के सम्मुख आया। चूँकि परोक्षजगत से संचालित प्राणीशक्ति का पुँज है यह , परमपूज्य गुरुदेव के महाप्रयाण (1990), परमपूज्यनीया माताजी के भी उन्हीं में लय होने (1994) के बाद भी इसके पाठकों में अनवरत वृद्धि होती रही है एवं विगत दस वर्षों में इनकी संख्या ढाई गुना बढ़ी है।

आधुनिक प्रेस उपकरणों को जिन्हें जानकारी है, वे जानते है कि कितनी तेजी से उनके मूल्य बढ़े हैं। प्रायः साढ़े छह लाख पत्रिका की छपाई पूर्णतः स्वावलंबी भाव से होती है, फिर भी छपाई की लागत, कागजों के बढ़ते मूल्य, स्याहियों की बढ़ती कीमतों ने इतने अवरोध खड़े कर दिए है कि अब इसे वर्तमान मूल्य पर इसी कलेवर में प्रकाशित करने में कठिनाई हो रही है। बिना किसी लाभ या हानि के मशीनरी स्तर पर चल रहे इस प्रयोग को किसी तरह विगत दो वर्षों से तो निताँत हानि में ही चलाया जा रहा है। जिस मिशन की दैवी सेवाएं संचालित करें, वह रुक कैसे सकता है, फिर भी परिजनों के सहयोग के अभाव में आर्थिक आक्रमण कहीं इस ज्योति का विलियित न कर दे, इसलिए लौकिक स्तर पर तो प्रयास किए ही जाने चाहिए। कलेवर बढ़ता जा रहा हैं, फोटो रंगीन छप रहे हैं, सामग्री का उच्चस्तरीय बनाया गया है तथा कागज की क्वालिटी भी अच्छी की गई है। बढ़े कलेवर व इन्हीं दामों में लगातार इसे पाँच वर्ष किसी तरह चलाया जाता रहा है। अब अपनी जेब से संस्थान को लगाने की स्थिति बिलकुल नहीं रह गई है।

इस बीच प्रायः सभी मासिक, साप्ताहिक, पाक्षिक अखबारों के दाम बढ़ते चले गए है। काँदिनिली, इंडिया टुडे (हिन्दी) , दोनों ने ही कीमतें बढ़ाई है। कादंबिनी मासिक का एक अंक का मूल्य पच्चीस रुपये है एवं वार्षिक चंदा 230 रुपये । विज्ञापनों से वे अन्य खरच भी उठा लेते हैं इंडिया टुडे हिन्दी पिछले दिनों काफी लोकप्रिय हुई है। 10 रुपये प्रति पत्रिका इसका मूल्य है। तदनुसार प्रायः पाँच सौ बीस रुपये प्रतिवर्ष माना जाना चाहिए, पर वार्षिक चंदा है 699 रुपये अन्य कई पत्रिकाएँ जो हिंदी में प्रकाशित होती थी, बंद होती चली गई। संस्कृति से इतर फिल्मी पन्नों वाले तो ढेरों दैनिक, पत्रिका बिकते ही रहते है। इनसे निताँत भिन्न है। ‘अखण्ड ज्योति’। जिसने जन-जन की सुयचित को बढ़ाया है एवं एक विधेयात्मक स्वाध्याय की प्रवृत्ति को बढ़ावा दिया है। विज्ञापन उपर्युक्त सभी पत्रिकाएं लेती है व अपनी अधिकाँश आय उन्हीं से इस उपभोक्ता प्रधान जगत् में लेती है। अपनी नीति शुरू से ही संस्थापक, आराध्य सता के निर्देशानुसार वैसी ही चलती रही हैं, चलती रहेगी। ‘अखण्ड ज्योति’ पत्रिका मूलतः परिजनों के अंशदान से चलती है, ज्योति प्रज्वलित बनी रही है इसी में इसकी शुचिता भी है, गरिमा भी ।

गेटअप यथावत रहे, शोध-निष्कर्षों को चित्रों के साथ छापा जाए, लेजर प्रिंटिंग से लेकर कागज की गुणवत्ता बढ़ाई जाए व विषयवस्तु की गुणवत्ता भी बनी रहे, तो एक ही उपाय है कि इसका चंदा बढ़ा दिया जाना चाहिएं। हर वस्तु जहाँ महँगी होती जा रही हो, वहाँ लागत ही नहीं, हानि पर निकलने वाली अपनी प्राणों से प्रिय पत्रिका को महँगे मूल्य पर भी परिजन अपनाएंगे, स्वीकार करेंगे, ऐसा विश्वास रखा गया है। अन्य कोई विकल्प बचा भी तो नहीं।

इसलिए सन् 2001 की जनवरी से अखण्ड ज्योति का चंदा बढ़ाकर साठ से बहत्तर रुपये वार्षिक किया जा रहा है। विगत पाँच वर्षों से यह कीमत बढ़ाई नहीं गई थी, कलेवर बढ़ गया व रंगीन चित्र भी आने लगे। अब यह बढ़ी कीमत पर और भी आकर्षक रूप से प्रकाशित हो, ऐसी योजनाएँ बनाई जा रही है। इतनी वृद्धि आशा है सभी स्वीकार करेंगे। इस बढ़ी हुई चंदे की कीमत में छह रुपये मासिक की दर पर जो पत्रिका उनके पास आएगी, उसमें प्रतिवर्ष संस्कृति, अध्यात्म, राष्ट्र साधना प्रधान एक या दो विशेषाँक होंगे। जनरुचि के सामान्य ज्ञान के विषय अधिक होंगे टाइप ऐसा होगा कि हर वय के व्यक्ति को पढ़ने में आसानी हों हर लेख के साथ चित्र भी हो, यह प्रयास किया जा रहा हैं रंगीन पृष्ठ चार प्रत्येक पत्रिका में होंगे सतयुगी संभावनाओं से भरे तथा वैज्ञानिक अध्यात्मवाद प्रधान लोक-शिक्षण के ज्ञान-क्राँति लाने वाले लेखों की भरमार होगी।

गुरुसत्ता की प्राणचेतना जिसमें गुँथी हो, उस जीवंत ऊर्जावान लोक-शिक्षक की भूमिका निभाने वाली पत्रिका की पाठक संख्या में जितनी अभिवृद्धि की जाएगी, उस पुण्य प्रयोजन में और मदद मिलेगी। जिसके लिए यह पत्रिका प्रकाशित हो रही। परिजन वोट कर लें, अब दिसंबर में महापूर्णाहुति विशेषाँक के साथ चंदा बढ़कर वार्षिक 72 रुपये, आजीवन 900 रुपये तथा विदेश के लिए 750 रुपये होगा । इसी बढ़े चंदे में पत्रिका मंगाएं और पाठक संख्या बढ़ाएं। अनुयाज वर्ष की यह सबसे बड़ी पुण्य भरी प्रक्रिया होगी।


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