एक अद्भुत छाप छोड़ गया विराट् विभूति ज्ञानयज्ञ

November 2000

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अप्रतिम, अद्भुत, अभूतपूर्व। बस यही शब्द थे सबके मुख पर। नई दिल्ली के सबसे पॉश कहे जाने वाले दक्षिण दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम में 6 अक्टूबर को संपन्न विराट विभूति ज्ञानयज्ञ एवं अद्भुत छाप सब छोड़ गया। यह अद्भुत उपलब्धियों एवं विलक्षणताओं से भरा एक समागम था, जिसमें राष्ट्र के कोने-कोने से आए गायत्री परिजनों, विभूतियों ने भागीदारी की। इसे एक संयोग कहा जाए या नियति के 26 वर्ष के जीवनकाल में एशियाड 62 के लिए बनाया गया यह स्टेडियम पहली बार खचाखच भरा था एवं वह भी पीतवस्त्रधारी रणबाँकुरों से। ये मरजीवडे जाए थे एक ही संकल्प लेने कि वे राष्ट्र को जाग्रत-जीवंत बनाकर रहेंगे, संस्कृति का अलख सारे विश्व में फैलाकर ही चैन लेंगे।

एक मशाल को पूज्यवर अपना उत्तराधिकारी घोषित कर गए थे। एक स्टेडियम में उस विशाल मशाल व उसके नीचे जनसमुदाय का प्रत्यक्ष दर्शन सभी ने किया। पूरे स्टेडियम को बैनर्स व प्रगतिशील संकल्पों से भरे होर्डिंग्स से सजाया गया था। स्थान-स्थान से जीपों, बसों, ट्रेनों से आए परिजनों ने समय पर स्थान ग्रहण कर लिया था। ठीक चार बजे सरस्वती वंदना एवं प्रज्ञावतार के रूप में एक एकाँकी के मंचन से कार्यक्रम शुरू हो गया। सृजन सैनिक संगठित रूप से पूरे आयोजन में जो 8 से 6.30 तक चला, अपने स्थानों पर बैठे रहे एवं मंत्रमुग्ध हो रसास्वादन करते रहे।

फरवरी, मार्च 2000 में इस आयोजन का संकल्प संचालक मंडल ने लिया था। नई दिल्ली के प्रज्ञापरिजनों ने अद्भुत संगठन शक्ति का परिचय दे यह दायित्व अपने कंधों पर लिया। मात्र दिल्ली ही नहीं, पूरे महानगर विस्तार, नेशनल केपीटल रिजन को यह जिम्मेदारी दी गई थी। इसमें फरीदाबाद, पलवल तथा गुड़गांव, रिवाडी भी शामिल था, तो बुलंदशहर, सिकंद्राबाद, गाजियाबाद, मुरादनगर, मोदीनगर, मेरठ भी। सोनीपत, पानीपत की भी इसमें भागीदारी थी, तो बागपत-बडौत-रोहतक की भी। इन सबका मार्गदर्शन करने के लिए श्री ए एस अवस्थी (रजिस्ट्रार, इंद्रप्रस्थ विश्वविद्यालय एवं निदेशक उच्च शिक्षा, दिल्ली) के मार्गदर्शन में एक चौदह सदस्नीय समन्वय समिति बनाई गई। श्री वी एस चौहान, सुलोचना शर्मा, डॉ मुरलीधरन, श्री के सी गुप्ता श्री अमरनाथ गर्ग, श्री पी के तिवारी, श्री धर्मवीर आनंद, श्री एवं श्रीमति जड़िया, राजेन्द्र बित्थर, श्री शीलू शान सागर, डॉ एस पी मिश्रा, श्री ओ पी सोनी तथा श्री गुलशन नवीन इसके सदस्य बने। दिल्ली कार्यालय, जो शाँतिकुँज के कैंप ऑफिस के रूप में ईस्ट ऑफ कैलाश में हैं, इसमें पूरी भूमिका बखूबी निभाई।

मीडिया के शांतिकुंज के सदस्यों एवं दिल्ली के परिजनों के सम्मिलित प्रयासों से एक व्यापक मंथन राष्ट्र की राजधानी में हुआ। अनेकानेक छोटे-बड़े कार्यक्रम हुए। सभी छोटे-बड़े राजनैतिक प्रतिभावानों तक आमंत्रण पहुँचा एवं सभी कार्यक्रम में आए। सबसे बड़ी चुनौती थी भोजन के एक लाख से अधिक पैकेट बनाना एवं उनका वितरण। श्री वीरेन्द्र एवं संतोष चौहान के अथक प्रयासों से यह भी सफलतापूर्वक संपन्न हुआ। भव्य द्वारों से सजी दिल्ली दुल्हन की तरह सभी का स्वागत कर रही थी। रैलियों से भी अप्रवाहित रहने वाली दिल्ली को बिना अव्यवस्थित किए एक लाख वास्तविक संख्या वाला समूह आकर बिना हल्ला-गुल्ला किए चला जाए एवं किसी को कोई शिकायत न हो, इसका नमूना बना यह कार्यक्रम।

स्टेडियम के केन्द्र में था साँस्कृतिक मंच। चारों ओर सजे थे 28000 दीपक। चार बड़े स्क्रीनों द्वारा कार्यक्रम का सीधा टेलीकास्ट किया जा रहा था। पश्चिम की ओर था विशिष्ट अभ्यागत मंच, जिस पर विराजमान थे भारत सरकार के गृह एवं आँतरिक सुरक्षा मंत्री श्री लालकृष्ण आडवाणी, मानव-संसाधन मंत्री श्री मुरली मनोहर जोशी, सूचना एवं प्रसारण राज्यमंत्री श्री रमेशबैस, ‘जागरण’ समूह के प्रमुख श्री नरेन्द्र मोहन तथा शाँतिकुँज-गायत्री परिवार के प्रतिनिधि श्रीमती शैलबाला पण्ड्या एवं डॉ. प्रणव पण्ड्या। एक प्रदर्शनी का अवलोकन कर दीप प्रज्ज्वलन से कार्यक्रम आरम्भ हुआ शाँतिकुँज के लगभग पचास कलाकारों की विशाल टोली ने ‘प्रज्ञावतार’ एवं ‘युग की पुकार’ दो नाट्य प्रस्तुतियाँ दी। भावप्रवण अभिनय एवं संदेश ने जन-जन के हृदय को स्पर्श किया। समारोह संचालक श्री कालीचरण शर्मा जी ने आए सभी प्रतिभावानों का स्वागत किया, तो प्राथमिक परिचयात्मक उद्बोधन में महापूर्णाहुति के प्रथम तीन चरणों सहित इस आयोजन की महत्ता पर प्रकाश डाला। मल्टीमीडिया की एक 24 मिनट की फिल्म द्वारा आंकड़ों के माध्यम से प्रस्तुति दी गई, जो पूरे स्टेडियम में देखी गई। बीच-बीच में प्रेरक प्रज्ञागीतों ने सभी को स्थिर बैठाए रखा व उल्लास के भाव से भर दिया।

चौथे चरण की विधि-व्यवस्था विभूति ज्ञानयज्ञ के फलितार्थों एवं हरिद्वार के विराट् कार्यक्रम पर डॉ. प्रणव पण्ड्या ने प्रकाश डाला, तो शैलबाला पण्ड्या (जीजी) ने परमपूज्य गुरुदेव से जुड़े संस्मरण सुनाकर प्रतिभावानों से राष्ट्र-निर्माण हेतु भावभरा आह्वान किया। श्री नरेन्द्र मोहन ने कहा कि हम देख रहे है कि भविष्य आपका है, गायत्री परिवार का है। साक्षात् देवत्व का अवतरण दिखाई दे रहा है। श्री रमेश बैस ने गायत्री परिवार के एक परिजन के रूप में अपने को बताया, तो मुरली मनोहर जोशी जी ने आध्यात्मिक उभार के लिए गायत्री परिवार को साधुवाद दिया। श्री लालकृष्ण आडवाणी जी दीपयज्ञ के समापन के बाद भावभरे हृदय से बोले कि मैं यहां न आता, तो एक बहुत बड़ी उपलब्धि से वंचित रह जाता।

कार्यक्रम युगनिर्माण सत्संकल्प के पाठ के साथ जलते दीपों की साक्षी में सृजन संकल्प के साथ समापन हुआ, पर पूरे महानगर पर एक अभिनव छाप छोड़ गया।


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