उसने अपने अधीनस्थ कर्मचारियों को हिदायत दी। देखो मुझे अपने पर भरोसा नहीं है। जब भी कीमती कपड़ा आता है, मैं ललचा जाता हूँ। इस पुरानी आदत को बुढ़ापे में बदलना जरा कठिन है। तुम सब एक ख्याल रखना कि जब भी मुझे कपड़ा चुराते देखो तो बस इतना भर कह देना “उस्तादजी! झण्डी!” बस मैं सचेत हो जाऊँगा।
शिष्यों ने पूछा- “उस्ताद जी! इसका मतलब?” उसने कहा-इस सब में तुम मत उलझो मेरे लिए बस इतना इशारा ही काफी है।
एक सप्ताह तक शिष्य उस्ताद को झण्डी की याद दिलाकर रोके रहे। किन्तु इसके बाद तो बड़ी मुसीबत हो गई। किसी ग्राहक का विदेशी सूट सिलने आया। उस्ताद ने पीठ फेरी व लगा चोरी करने। शिष्यों ने टोका। उस्ताद जी झण्डी बार-बार सुनने पर उस्ताद चिल्लाया “बन्द करो बकवास। अपना काम करो। तुम्हें कुछ पता भी है, वहाँ इस रंग की झण्डी थी ही नहीं यदि इतनी झण्डियाँ लगी हैं तो एक झण्डी और लग जायगी।”
उथले नियम जीवन को दिशा नहीं दे पाते सपनों में सीखी बातें जीवन का सत्य नहीं बन पातीं। भय के कारण लोभ कितनी देर सँभला रहेगा। लोभ को स्वयं कड़ा अंकुश लगाकर नियंत्रित करना पड़ता है।
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