स्वप्न दिखाते हैं अविज्ञात की झाँकी

January 1991

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स्वप्न वस्तुतः है क्या? इस पर लम्बे समय से अध्ययन कार्य चलता रहा है, पर भिन्न-भिन्न शोधकर्ता अब तक अपने अलग-अलग निष्कर्ष पर पहुँचे हैं। शरीरशास्त्री मस्तिष्कीय क्रिया का मात्र इसे एक अंग भर मानते हैं, तो मनोवैज्ञानिक इसमें तरह-तरह के संकेत सूत्र के दर्शन करते हैं। फ्रायड ने इसे दमित-इच्छाओं का परिणाम बताया, तो जुँग ने इसमें भविष्य की झाँकी की। मूर्धन्य अमेरिकी खगोल भौतिकीविद् कार्ल साँगा ने इसे विकासवाद से जोड़ दिया जबकि ईवान्स जैसे शरीर विज्ञानी भी इसे ब्रेन-फिजियोलॉजी का एक हिस्सा मान कर छुट्टी पा लेते हैं। रूस एवं अमेरिका जैसे कई देशों में इसे भविष्य सूचक महत्वपूर्ण संकेत मान कर उससे संबंधित अनेक संस्थान स्थापित किये गये हैं, पर इनमें से किसी ने भी अब तक स्वप्न को रोग-विज्ञान से नहीं जोड़ा था। रूस के चिकित्सक डॉ. कसाटकिन ने ही सर्वप्रथम इसे रोग विज्ञान से जोड़ कर इस दिशा में एक नए अध्याय की शुरुआत की।

प्रसिद्ध चिकित्सक व रूसी वैज्ञानिक वासिली निकोलायेविच कसाटकिन की इस दिशा में गहरी अभिरुचि एवं अनुसंधान संबंधी लगन कैसे उत्पन्न हुई, इसका भी एक रोचक प्रसंग है। वे अपनी तत्संबंधी पुस्तक “थ्योरी ऑफ ड्रीम्स” में इसका उल्लेख करते हुए लिखते है कि बात उन दिनों की है, जब द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान रूस पर ताबड़तोड़ जर्मनी के हमले हो रहे थे, तब वे एक चिकित्सक के रूप में लेनिनग्राद में कार्यरत थे। इन्हीं दिनों सपनों के प्रति इनका लगाव बढ़ा और उन ने उस पर अनुसंधान करने की ठान ली। हुआ यों कि एक दिन उनके पास चिकित्सा हेतु एक रोगी महिला पहुँची। प्रथम परीक्षण के बाद जब किसी प्रकार की व्याधि का पता न चला तो बीमार ने कई दिनों से बार-बार आने वाले अपने एक डरावने स्वप्न की चर्चा डॉक्टर से की। उक्त महिला स्वयं को एक बालू के टीले में सोयी हुई पाती और फिर अचानक टीले का एक हिस्सा टूट कर उसके चेहरे को पूरी तरह ढक लेता, जिससे साँस संबंधी कठिनाई उत्पन्न हो जाती। यह परेशानी इतनी गंभीर होती कि जगने पर भी उसे दम घुटा-घुटा सा अनुभव होता- इस स्वप्न चर्चा के बाद कसाटकिन ने यों ही महिला का मन बहलाने के लिए उसका एक्सरे फोटोग्राफ ले लिया। दूसरे दिन प्लेट की प्रोसेसिंग की तो वह यह देख कर सन्न रह गये कि उस महिला का फेफड़ा क्षयरोग से ग्रस्त था जब कि बहिरंग में कोई लक्षण न थे।

बस, यहीं से स्वप्न संबंधी अध्ययन के प्रति उनका रुझान पढ़ा और वे अपना अधिकाँश समय लोगों से मिलने एवं स्वप्न-संबंधी चर्चा में बिताने लगे। फिर वे उन स्वप्नों का विश्लेषण कर किसी निष्कर्ष पर पहुँचने का प्रयास करते। इनमें अनेक बार उन्हें सफलता भी मिली और बीमारी का सही-सही अनुमान लगाने में वे कई बार सफल हुए। ऐसे ही एक विचित्र, किन्तु रोचक सपने का विवरण प्रस्तुत करते हुए वे अपनी पुस्तक में लिखते हैं कि एक बार उनके पास बड़ा ही विलक्षण केस आया। एक व्यक्ति उनके पास आकर अपने सपने का उल्लेख करते हुए कहने लगा कि सुबह-सुबह कई सप्ताह से उसे लगभग एक ही स्वप्न दिखाई पड़ता है कि वह अपना काम निपटा कर अपने बिस्तर में आराम कर रहा है। तभी एक केकड़ा सामने से आता दिखाई देता है, जो क्रमशः नजदीक आते-आते उसके बिस्तर तक पहुँच जाता है और फिर उसके पेट में चढ़ कर त्वचा को काटते हुए अंदर प्रवेश करने लगता है। उसकी चीख निकल पड़ती है और इसी के साथ स्वप्न भंग हो जाता है, वह जग पड़ता है।

स्वप्न को सुन कर डॉ. कसाटकिन ने अनुमान लगाया कि इसके पेट में निश्चय ही कोई बीमारी पनप रही है, जो अपनी आरंभिक अवस्था में होने के कारण अपनी स्थूल अभिव्यक्ति नहीं कर पायी है, पर सूक्ष्म मन उसकी उपस्थिति का संकेत प्रतीकात्मक रूप में लगातार देते हुए व्यक्ति को उसके प्रति सचेत करना चाहता है। ऐसा निश्चय कर कसाटकिन ने उस व्यक्ति के पेट का सूक्ष्म परीक्षण करना आरंभ किया। कई दिनों के प्रयास से उन्हें उसके पेट में एक गाँठ की मौजूदगी का पता चला। बाद में यह भी ज्ञात हो गया है कि वह कैंसर की गाँठ है, क्योंकि इसके कुछ ही दिनों पश्चात् उस में दर्द आरम्भ हो गया। केकड़ा कैंसर की गाँठ के प्रतीक के रूप में ही उसे दिखाई देता था।

इसी प्रकार एक महिला को कई दिनों से बराबर स्वप्न आता था कि उसके शरीर को बुरी तरह क्षतिग्रस्त किया जा रहा है। इस स्थिति में वह इतना क्षत-विक्षत हो जाती कि साँस लेने में कठिनाई अनुभव करने लगती। ऐसा महसूस होता कि अब वह मरने ही वाली है। ताबूत भी सामने ही रखा दिखाई पड़ता। बस यहीं उसकी नींद टूट जाती। सपना भंग हो जाता। डॉ. कसाटकिन ने जब उसका गहन परीक्षण किया, तो मालूम हुआ कि उसे टी.बी. का संक्रमण हो चुका है, जो अभी बिल्कुल आरंभिक अवस्था में है।

ऐसे अनेकों रोग जन्य सपनों की चर्चा उन्होंने अपनी पुस्तक में की है और इनके अध्ययन से वे जिस निष्कर्ष पर पहुँचे हैं, उसका भी विशद् उल्लेख है। इस संदर्भ में वे जिस सिद्धान्त का प्रतिपादन करते हैं उसके अनुसार यह सब प्रक्रिया प्रमस्तिष्क का एक अविच्छिन्न अंग हैं। वहाँ की अति संवेदनशील कोशिकाएँ रात के शान्त वातावरण में जबकि मस्तिष्क बाहरी प्रभावों से सर्वथा अछूता और अप्रभावित पड़ा रहता है, और भी संवेदनशील बन जाती हैं। इस दौरान रोगजन्य उन सूक्ष्म परिवर्तनों को भी पकड़ने में वे सक्षम हो जाती हैं, जो अन्य अवसरों पर प्रायः उनकी पकड़ से मुक्त बने रहते हैं।

स्वप्नों की जहाँ निदान में महत्वपूर्ण भूमिका हैं, वहीं उन्हें चिकित्सा रूप में भी प्रयुक्त किया जा सकता है। ड्रीम थेरेपी, जिसमें निद्रा की एक विशिष्ट स्थिति में विशेष संदेश “हेट्रोसजेशन” के माध्यम से व्यक्ति को सुनाकर उसके स्नायु कोषों को उत्तेजित कर वाँछनीय मस्तिष्कीय हारमोन्स का स्राव बढ़ाया जाता है, अब कई मनोविज्ञान प्रयोगशालाओं में प्रयुक्त हो रही है। तनाव,जो नब्बे प्रतिशत रोगों का मूल कारण होते हैं, की चिकित्सा इस विधि से अब और अच्छी तरह संभव हैं।

वस्तुतः स्वप्न मनुष्य की परोक्ष चेतना प्रवेश का मार्ग सुझाते हैं। यदि मनःसंस्थान को थोड़ा भी परिष्कृत किया जा सके तो न केवल रोगों, जटिलताओं का निदान वरन् समष्टिगत घटनाक्रमों, भवितव्यताओं का पूर्वाभास भी संभव है। स्वप्न उस असीम संभावनाओं का द्वार खोलते हैं जो प्रसुप्त मस्तिष्क को जागने पर सहज ही उपलब्ध हो सकती हैं।


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