अध्यात्मवादी जीवन का प्रारंभिक पाठ (Kahani)

January 1991

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कबूतर को घोंसला बनाना नहीं आता था। वह टेढ़ी तिरछी लकड़ी जमा कर लेता। हवा का झोंका आते ही टहनी पर जमी वे लकड़ियाँ जमीन पर गिर जाती और अण्डे नष्ट हो जाते।

कबूतर ने दूसरे पक्षियों से प्रार्थना की कि उसे अच्छा घोंसला बनाना सिखा दें । कई पक्षी उसका अनुरोध सुनकर मजबूत घोंसला बनाने सिखाने आये।

कबूतर ने उपेक्षापूर्वक उस शिक्षण को देखा और कहा इसमें क्या बड़ी बात है। ऐसा तो मैं भी बना सकता हूँ। कृतघ्नता भरे उसके वचन सुनकर सभी पक्षी अपने-अपने घर उदास होकर चले गये कहते हैं जब अच्छा तुम्हें आता ही था तो हमें बुलाने की जरूरत क्या थी।

सीखने में रुचि न लेने वाला कबूतर अभी भी आड़ी टेढ़ी लकड़ियों का घोंसला भर बनाता है और पहले की तरह आये दिन उसको बरबाद होता देखता रहता है। कर्तव्य होता देखता रहता है।

यह चारों संयम किस प्रकार सध रहे हैं, इसका निरीक्षण-निर्धारण, चिंतन-मनन के अंतर्गत किया जाता है। चिन्तन का तात्पर्य है भूतकाल की भूलों को सुधारना और वर्तमान की सार्थकता पर कड़ी नजर रखना। मनन कहते हैं- भावों योजनाओं का निर्धारण और उन्हें पूरा करने के लिए योजनाबद्ध क्रिया -कलाप का निर्धारण। यह चिन्तन-मनन थोड़ा समय हर दिन निकाल कर करते रहना चाहिए, ताकि संयम साधना में कहीं चूक न होने पावे। इसे साप्ताहिक रूप में तो विशेष तत्परतापूर्वक अपनाया जाना चाहिए। इसे अध्यात्मवादी जीवन का प्रारंभिक पाठ समझा जाना चाहिए।


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