कम्बोज राज में एक राज्य पुरोहित का स्थान खाली था। उसके लिए उपयुक्त व्यक्ति की तलाश चल रही थीं।
एक विद्वान स्वयं पहुँचे और राजा से बोले कि मुझे उस पद पर नियुक्त कर दिया जाय। उन ने अपनी योग्यता और शिक्षा का विस्तृत विवरण बताया। राजा ने उत्तर दिया आपने जो पढ़ा है उसे व्यवहार में उतारने का प्रयत्न करें। इस कार्य को पूरा करके एक वर्ष बाद आयें बाद में निर्णय किया जायगा। विद्वान लौट गया। एक वर्ष तक उन्हीं पुस्तकों का इस दृष्टि से घोंटता रहा कि राजा शायद उनमें से कुछ प्रश्न पूछे।
एक वर्ष बाद पुरोहित फिर आये तो इस बार भी उन्हें एक वर्ष बाद आने का उत्तर मिला वह निराश वापस लौटे। मन ही मन विचार करते रहे पुस्तकों का ज्ञान तो मैंने बहुत इकट्ठा किया पर उसे व्यवहार में नहीं उतारा। शायद इसी कमी के कारण मुझे बार-बार वापस लौटना पड़ता है।
अब उन्होंने धर्म सिद्धान्तों को जीवन में उतारना आरंभ किया तो राज पुरोहित बनने की आकाँक्षा ही समाप्त हो गई। वे लोक सेवा में लगकर और भी अधिक संतोष एवं उल्लास प्राप्त करने लगे।
तीसरी बार उनको तलाश करने राजा ने स्वयं अपने दूत भेजे। मालूम हुआ कि उन ने समस्त शास्त्रों का सार अपने जीवन में उतार लिया है जो फिर किसी परीक्षा या तैयारी की आवश्यकता ही न रही। राजा स्वयं जाकर उन्हें बुलाकर लाये और नये राजपुरोहित के पद पर आसीन कर दिया।
*समाप्त*