स्वामी विवेकानन्द उन दिनों विश्व भ्रमण पर थे। एक दिन इंग्लैण्ड की एक सभा में उनका भाषण हुआ। उसमें उन ने कार्यकर्ताओं से अपील की और कहा विश्व के पिछड़ेपन को दूर करने के लिए संकल्पशील कार्यकर्ताओं की आज महती आवश्यकता है। यदि ऐसे सौ गतिशील कार्यकर्ता मिल जायँ तो जन जागरण में महती सहायता मिल सकती है।
सभी लोग एक दूसरे का मुँह देख रहे थे। सन्नाटे को चीरती हुई एक किशोरी उठी। उसने कहा -मैं आपके आवाह्न पर अपना जीवन समर्पित करती हूँ। इससे जो चाहें सो काम लें।
स्वामी विवेकानन्द उसे भारत ले आये। संन्यास की दीक्षा दी। उनका नाम बहिन निवेदिता रखा। उन ने आजीवन भारत में महिला समाज की महती सेवा सम्पन्न की।