अनुभवजन्य ज्ञान ही (Kahani)

January 1991

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

दत्तात्रेय आत्मज्ञान संबंधी जिज्ञासाओं का समाधान करने के लिए कितने ही विद्वानों के पास गये। पर उनका समग्र समाधान न हो सका। इस पर वे प्रजापति के पास पहुँचे और ऐसा उपाय पूछने लगे जिससे उनका संतोष हो सके।

प्रजापति ने कहा दूसरों से पूछने पर यह प्रयोजन सिद्ध न होगा। अपने इर्द-गिर्द जो घटनाक्रम हों उसी से निष्कर्ष निकालो और अनुभव के आधार पर उसे अपनाओ।

इस सूत्र को लेकर दत्तात्रेय चल पड़े। उनने मकड़ी को देखा जो स्वयं ही जाल बुनती, स्वयं ही उसमें फंसती और जब मोजडडडडड आती तब उस धागे को लपेट कर मुँह में निगलती है। उनने निष्कर्ष निकाला कि मनुष्य स्वयं ही माया जाल बुनता और उसमें फँसकर त्रास पाता है। पर जब उसका विवेक जागता है तो समूची जंजाल को समेट कर स्वतंत्र हो जाता है।

इसी प्रकार उन्होंने अनेक प्राणियों की गतिविधियाँ देखी और उस उदाहरण के आधार पर निष्कर्ष निकालते हुए अपना समाधान किया। ऐसी 24 घटनाओं से उनका आत्मज्ञान पूरा हो गया। यह मार्ग दूसरों के लिए भी है। अनुभवजन्य ज्ञान ही प्रत्यक्ष निष्कर्ष निकालने में सहायक होता है।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles