जिसकी तरफ निहारा तुमने, वह जीवित मधुमास बन गया।
जिस पर कर दी कृपा दृष्टि वह, पूरब का आकाश बन गया ॥
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तुम थे स्वयं सिंधु करुणा के, सब जलधाराओं के आश्रय।
पास तुम्हारे आ जाये बस, मानव हो जाता था निर्भय ॥
तुम्हें समर्पित हर जीवन, लहरों का चिर उल्लास बन गया ॥
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जिसको समझा पात्र उसे ही, लोकहितों की दीक्षा दी है।
जिसे बनाया कंचन-उसे सौख्य कम,अधिक तितिक्षा दी है ॥
जिसने ऐसा ताप पी लिया, वही तुम्हारा “खास” बन गया॥
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सीख लिया जिसने साँसों का विलय, लोक सेवा में करना।
सबको देना गंध- स्वयं रहकर, काँटों के बीच - निखरना ॥
ऐसा हरेक प्राण तुमसे मिल, दिव्य मलय वातास बन गया ॥
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और चलाया जिसको अपने साथ, उँगलियाँ पकड़ कर।
जिसके प्राणों में भर दिये, साधना युक्त तपे स्वर ॥
उसका क्रियाकला तुम्हारे, सँग शाश्वत इतिहास बन गया ॥
-माया वर्मा