प्रसिद्ध चिकित्सा शास्त्री डॉ. सैमसन ने अपन मत इस प्रकार प्रस्तुत किया है - मेरे पास एक ऐसा मरीज आया जिसके बचने की घर वालों को कोई आशा नहीं थी, मैंने रोगी से बड़ी दिलचस्पी और मुसकराहट के साथ उसकी स्थिति के बारे में पूछा। हास्य और मुसकराहट भरे व्यवहार से रोगी के चेहरे पर भी मुसकराहट की रेखा उभर आयीं। डॉ. सैमसन ने उपस्थिति लोगों से कहा कि “चिन्ता की कोई बात नहीं हैं, रोगी ठीक हो जायेगा, क्योंकि अभी इसमें हँसने की क्षमता शेष है।” कुछ समय की चिकित्सा के बाद रोगी ठीक हो गया। वे रोगों की दवा एवं चिकित्सा के साथ उसके मनोरंजन, हँसी, मुस्कराहटपूर्ण व्यवहार को महत्वपूर्ण समझते थे। उनका यह नुस्खा दवाओं से भी अधिक कारगर सिद्ध होता था।
दार्शनिक बायरन ने लिखा है “ जब भी सँभव हो, हँसों, यह एक सस्ती दवा है।” हँसना मानव जीवन का उज्ज्वल पहलू है। वस्तुतः हँसी यौवन का आनन्द है। हँसी यौवन का सौंदर्य और शृंगार है। जो व्यक्ति इस सौंदर्य को धारण नहीं करता उसका यौवन भी नहीं ठहरता। एक चिकित्सक ने अपने प्रयोगों के आधार पर सिद्ध किया है कि ठट्ठा मारकर हँसने से- सदैव प्रसन्न चित्त रहने से मनुष्य का पाचन संस्थान तीव्र होता है। रक्ताणु वृद्धि प्राप्त करते हैं। स्नायु संस्थान ताजा होता है और स्वास्थ्य बढ़ता है।
जीवन के चढ़ावों में तो प्रसन्नता का विशिष्ट महत्व है। संसार में शायद ही ऐसा कोई व्यक्ति होगा जिसके जीवन में विभिन्न मोड़, घटनाएँ, समस्याएँ कठिनाइयाँ न हों। इन सबसे हलके रहने के लिये इनसे बचने के लिये एक मात्र साधन हँसना ही तो है। हँसने से कठिन से कठिन समस्याओं का हल मनुष्य सरलता से निकाल लेता है।
यदि जीवन के हर क्षण को उलझनों में ही उलझायें रहें तो निःसंदेह विक्षिप्त हो सकते हैं। हास्य प्रधान व्यक्ति जीवन की बड़ी-बड़ी कठिनाइयों और समस्याओं का सामना भली प्रकार कर सकता है और जीवन संग्राम में हँसी के साथ ही विजय प्राप्त कर सकता है। महापुरुषों के भारी कार्यभार, संघर्षपूर्ण जीवन की सफलता का रहस्य उनके हँसते रहने मुसकराहट भरे जीवन दर्शन में छिपा रहता है। जिन्होंने महात्मा गाँधी, तिलक, दयानंद, विवेकानन्द आदि पुरुषों के संपर्क का लाभ प्राप्त किया है या उनके जीवन का अध्ययन किया है वे जानते हैं कि महापुरुष कितने विनोद प्रिय स्वभाव के होते हैं और उसी में इनके संघर्षमय, कर्तव्य प्रधान कठोर जीवन की सफलता का मंत्र सन्निहित रहता है। प्रसिद्ध जापानी विचारक योन नगीचो ने लिखा है “जब जिन्दगी की हरियाली सूख जाय, सूर्य ग्रहण की काली छाया में ढक जाय, प्रगाढ़ मित्र और आत्मीय जन मुझे कंटकाकीर्ण जीवन पथ पर छोड़कर चले जायँ और सृष्टि की सारी नाराजगी मेरी तकदीर पर बरसने को तत्पर हो तो ऐसे समय मेरे प्रभु मुझ पर इतना अनुग्रह अवश्य करना कि मेरे होठों पर हँसी की उजली रेखा खिंच जाय।”
शारीरिक दृष्टि से हँसने का बड़ा महत्व है। खिल खिलाकर हँसना, हास्य विनोद, मुसकराहट मनुष्य के स्वभाव को ठीक बनाने की अचूक दवा है। इसमें कोई सन्देह नहीं कि हास्य और मुसकराहट के संपर्क से कठिनाइयाँ परेशानियाँ तो हल होती ही हैं, पर शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर भी इसका चमत्कारी प्रभाव पड़ता है। मानसिक स्वास्थ्य के लिए भी हँसना एक महत्वपूर्ण साधन है। हास्य जीवन का सौरभ है। कुन्द्र कलिका जब खिलखिला उठती हैं तो उसका सौंदर्य देखते ही बनता हैं। मनहूसों का भी दिल उसकी ओर आकर्षित हो उठता है। जीवन की विभीषिकाओं से दग्ध मनुष्यों के लिये भी वह कुछ क्षण नव जीवन का प्रेरणा केन्द्र बन जाते हैं। बाल सुलभ मुसकराहट, हँसी विनोद के संपर्क, में आकर निराशाग्रस्त, नीरस व्यक्तियों में भी स्फुरणा जाग पड़ती है। हास्य विनोद अपने दुख एवं अवसाद की अनुभूतियों को भी तिरोहित कर देता हैं।
दार्शनिक कार्लाइल ने कहा है कि “वस्तुतः हास्य एक चतुर किसान है जो मानव जीवन पथ के काँटों, झाड़ झंखाड़ों को उखाड़ कर अलग करता है और सद्गुणों के सुरक्षित वृक्ष लगा देता है। जिससे हमारी जीवन यात्रा एक पर्व उत्सव बन जाती है। मनोविज्ञान वेत्ताओं और शरीर विद्या विशारदों ने अपने प्रयोग, खोज और अनुभवों के आधार पर यह सिद्ध कर दिया है कि ईर्ष्या, द्वेष, क्रोध, उत्तेजना, भय,चिन्ता आदि मनोविकारों और शारीरिक गड़बड़ी से मनुष्य शरीर में जो विष पैदा हो जाता है उसके शोधन के लिए हास्य एक अनुभूत प्रयोग है।
खिलखिला कर हँसने पर मनुष्य के स्नायु व मानसिक संस्थानों का तनाव आश्चर्यजनक ढंग से दूर हो जाता है। हँसने से छाती और पेट की नसें, पेशियाँ विशेष प्रभावित होती हैं और सक्रिय बन जाती हैं। श्वास प्रश्वास द्वारा ऑक्सीजन अधिक मात्रा में ग्रहण की जाती है और रक्त की भी शुद्धि तेजी से होने लगती है। शरीर में जीवन तत्व सक्रिय होकर स्वास्थ्य को पुष्ट बनाते हैं।
जो हँस नहीं सकते, सदैव गम्भीरता और सोच विचार में लगे रहते हैं, मानसिक कुण्ठा जिन्हें घेरे रहती हैं वे कई शारीरिक और मानसिक रोगों से पीड़ित हो जाते हैं। जीवन के संघर्षों और कठिनाइयों में वे ही डूबे रहते हैं जो सदैव गम्भीर और उदास रहते हैं। वह संघर्षों से उभर ही नहीं पाते और अपनी हानि करते रहते हैं।
देखा जाता है कि स्त्रियाँ पुरुषों की अपेक्षा शारीरिक मानसिक रोगों से कम पीड़ित होती हैं। क्योंकि उनमें हास्य विनोद की वृत्ति अधिक होती है। स्त्रियाँ स्वयं को ही नहीं वरन् पुरुषों को भी जीवन निराशा और कुण्ठाओं से बचाये रखती हैं। उनके हास्य विनोद के लिए भले ही उन्हें साधन ही क्यों न जुटाने पड़े, वे घर का वातावरण प्रफुल्लित रखती हैं, ताकि वाह्य परिस्थितियों में गुजरा हुआ आदमी प्रसन्नचित रह सके और शारीरिक एवं मानसिक तनाव को दूर कर सके।
=कहानी=============================
एक अमीर बीमार पड़ा। बहुतों का इलाज कराने पर भी अच्छा न हो पाया। तब उससे किसी ने लुकमान के पास जाने को कहा। वहाँ पहुँचा।
लुकमान ऊँट चरा रहे थे। बताने वाले ने उनका पता बता दिया। वे वहाँ पहुँचे। लुकमान ने नाड़ी परीक्षा की, लक्षण पूछे और जेब से निकाल कर कुछ गोलियाँ दीं- कहा उन्हें अपने माथे के पसीने में गला करके कुछ दिन खाते रहिए। अच्छे हो जायेंगे।
रोग कुछ ही दिन में अच्छा हो गया। बदले में उन्हें बड़ा पुरस्कार और सम्मान मिला।
शिष्यों ने कहा जो दवा आपने दी थी उसका रहस्य हमें भी बता दें। लुकमान ने कहा- दवा तो उपलों की राख भर थी। पर उसे सिर का पसीना निकालने में नित जो मेहनत करनी पड़ी चमत्कार उसका था। परिश्रमी लोग या तो बीमार पड़ते ही नहीं या फिर जल्दी अच्छे हो जाते हैं।
शिष्यों ने कहा जो दवा आपने दी थी उसका रहस्य हमें भी बता दें। लुकमान ने कहा- दवा तो उपलों की राख भर थी। पर उसे सिर का पसीना निकालने में नित जो मेहनत करनी पड़ी चमत्कार उसका था। परिश्रमी लोग या तो बीमार पड़ते ही नहीं या फिर जल्दी अच्छे हो जाते हैं।
इसी तरह बच्चे भी शारीरिक और मानसिक दृष्टि से स्वास्थ्य मनोरंजन का त्याग नहीं करते। जो जितनी हँसी खुशी से जिन्दगी बितायेगा वह उतना ही स्वस्थ और मानसिक प्रसन्नता से युक्त रहेगा। कवीन्द्र रवीन्द्र ने कहा है जब मैं अपने आप में हँसता हूँ तो मेरा बोझ हलका हो जाता है। महात्मा गाँधी के अनुसार “हँसी मन की गांठें बड़ी सरलता से खोल देती है। मेरे मन की ही नहीं तुम्हारे मन की भी।” जार्ज बर्नार्डशा ने लिखा है “हँसी के कहकहों पर यौवन के प्रसून खिलते हैं।” सदा जवान और ताजा बने रहने के लिए खूब हँसिये ठहाके लगाकर हँसिए एवं ग्रन्थि मुक्त हो जाइए।