सचेतन प्राणियों में विद्यमान विद्युत चुम्बकत्व एक प्रचण्ड शक्ति है जिसमें सभी वस्तुएँ अदृश्य रूप से प्रभावित होती हैं। इसमें होने वाले परिवर्तन ही प्रमुख रूप से विकास या ह्रास की -प्रगति या अवगति की दिशा का निर्धारण करते हैं। यह शक्ति पृथ्वी, सूर्य, चन्द्रमा सहित समस्त ग्रह -गोलकों अर्थात् पिण्ड-ब्रह्माण्ड से लेकर अनन्त अन्तरिक्ष में प्रचुर परिणाम में विद्यमान है जिसके फलस्वरूप आकर्षण, विकर्षण, द्वंद्व - संघर्ष, गति-प्रगति जैसी हलचलें दृष्टिगोचर होती हैं। मनुष्यों में विद्युत चुम्बकत्व विशेष रूप से और अन्य प्राणियों में साधारण रूप से परिलक्षित होता है।
यही शक्ति पेड़-पौधों में भी विद्यमान है और उसी अदृश्य प्रक्रिया से उनमें वृद्धि या अपघटन होता रहता है। मनुष्यों की भाँति वृक्ष वनस्पतियाँ भी ब्रह्माण्डीय तरंगों के प्रति संवेदनशील होते हैं। और इनसे उनके स्वयं के जैव विद्युत में भी परिवर्तन आता है। इस आधार पर वे प्राकृतिक घटनाओं की भी जानकारी दे सकने में सक्षम होते हैं। इस संदर्भ में गहन वैज्ञानिक अनुसंधान भी हुए हैं।
अनुसंधानों की इसी शृंखला में एक अध्ययन न्यू हैवन, कनेक्टीकट के मूर्धन्य वैज्ञानिकों ने पिछले दिनों मैपल पेड़ पर किया है। लगातार तीस वर्षों तक पौधे को वोल्टमीटर से संबद्ध रखकर उसकी विद्युतीय तरंगों को रेखाँकित किया जाता रहा। विश्लेषण करने पर विद्युतीय तरंगें अनियमित क्रम में पायी गयी । उनमें स्थानीय तड़ित झंझा और भू-चुम्बकीय क्षेत्र में न्यूनाधिकता के कारण वैद्युतिक गड़बड़ी का स्पष्ट अंकन था जिसे अनियमित तरंग-रचना का आधारभूत कारण माना गया। इसके अतिरिक्त पौधे ने ग्राफ में 24 घण्टे का एक सौर रिदम, 25 घण्टे का चन्द्र रिदम एवं एक लम्बी अवधि के चन्द्र चक्र का भी संकेत किया जो पूर्णिमा के दिन अपने उत्कर्ष पर पहुँचता था।
एक अन्य अध्ययन में पाया गया है कि पेड़-पौधे भी मनुष्यों एवं अन्य प्राणियों की तरह अपने अंतराल में भव संवेदनाओं की गंगोत्री से भरे होते हैं। अपने साथ सहानुभूति रखने वालों की और आकर्षित होते, पुष्पों को खिलखिलाते एवं क्रूरता-कठोरता बरतने वालों के प्रति विकर्षण का, उदासीनता का भाव प्रदर्शित करते उन्हें देखा जाता है। पौधे इस तरह के भावोद्दीपन का प्रदर्शन अपने वैद्युतीय तरंगों में घट-बढ़ के रूप में करते हैं। विज्ञानवेत्ताओं ने इसके मापन के सफल प्रयोग किये हैं। उनका निष्कर्ष है कि वनस्पति समुदाय में सन्निहित प्राण ऊर्जा को बढ़ाया और उनसे संवेदनशील एन्टीना का कार्य लिया जा सकता है।
इस संदर्भ में इण्डियन स्पेस रिसर्च ऑर्गनाइजेशन के प्रसिद्ध वैज्ञानिक डॉ. एस. पी. कोस्टा ने महत्वपूर्ण सफलता पाई है। आरंभिक प्रयोगों में उन ने रेडियो फ्रीक्वैन्सी एन्टीना के रूप में लीव साइप्रस, खजूर आदि का प्रयोग किया, किन्तु बाद में गुलमोहर कान्हा, बोरलबुरा, नारियल, डेट पाम तथा फर्न जैसे पौधों को चुना और उन्हें माइक्रो फ्रीक्वेन्सी इलेक्ट्रॉनिक एन्टीना के निमार्ण में प्रयुक्त किया। उनका कहना है कि पौधे अपनी जीवंत एवं जटिल संरचना के कारण विद्युत उत्पादन सहायक होते हैं। विद्युत चुम्बकीय तरंगें आसपास के वातावरण में सतत् छोड़ते रहने के कारण इनका सम्बन्ध माइक्रोवेव्स से सरलतापूर्वक हो जाता है। इन्हीं विशेषताओं के कारण अब लता-गुल्मों, वृक्ष-वनस्पतियों का उपयोग माइक्रोवेव कान्टैक्ट सिस्टम के माध्यम से पुलिस अपराधियों को पकड़ने में करने लगी है। टेलीविजन देखने हेतु ग्रीन लीव एन्टीना की प्रणाली क्रियान्वित की जाने लगी है। अति उच्च फ्रीक्वेन्सी वाले रेडियो संकेत ऊँचे वृक्षों की हरी पत्तियों के माध्यम से शीघ्रतापूर्वक उपलब्ध किये जा सकते हैं।
पेड़-पौधों में भी जीवन होता है। प्राण होता है। अब यह भी सिद्ध हो चला है कि उनमें विद्युत भी होती है। ऐसी दशा में उन्हें प्राणि बिरादरी में गिना जाना और सहानुभूति की दृष्टि से देखा जाना हमारा कर्तव्य होता है। उनकी जितनी क्षति होती है, उसकी पूर्ति भी वृक्षारोपण द्वारा हमें करनी चाहिए।