एक मृत बालक की लाश को लेकर उसके कुटुम्बी शमशान घाट गये। उस समय बारिश पड़ रही थी। एक पेड़ के नीचे बैठ कर वे लोग विचार करने लगे कि अंत्येष्टि कैसे की जाये?
लाश की गंध पाकर कई जानवर वहाँ एकत्रित हो गये और अपने-अपने लाभ को ध्यान में रखकर उन लोगों को सलाह देने लगे।
सियार ने कहा उसे जमीन में गाढ़ दें। मनुष्य मिट्टी से ही पैदा होता है उसी में उसे स्थान मिलना चाहिए।
गिद्ध ने कहा लाश की दुर्गति न करें उसे हवा धूप द्वारा सूख जाने का अवसर दें।
कछुए ने कहा इसे पानी में बहा दें। जल समाधि सबसे उत्तम है।
लाश लाने वाले, लोगों ने अपने अपने लाभ की दृष्टि से कही बातों को समझ लिया और टेढ़ी आँखें करके कहा- आप लोगों की सलाह की हमें तनिक भी आवश्यकता नहीं है। आप लोग चले जाये हमें जैसा उचित लगेगा अपनी समझ से करेंगे।
इस आत्मक्रान्ति के अनेक अवसर हमने भी पाए हैं, पा रहे हैं,और पाएँगे। यदि इन महत्वपूर्ण अवसरों को पहचानना सीख जाएँ। स्वयं के मन को, दोषों को समझ सकें, इनका निवारण कर सकें। मनःस्थिति बदलें तो परिस्थिति बदलने का सूत्र धारण कर पाएँ, तो हमारे जीवन में भी विषाद योग हो जाएगा। विषाद से संतप्त मनोभूमि से उगा योग का वह वट वृक्ष स्वयं के साथ अनेकों को अपनी शीतलता से त्राण दिलाएगा। अनुभूतियों का पिटारा बनी जिन्दगी में यह एक ऐसी चिर स्थाई अनुभूति डाल जाएगा जिसको पाकर न केवल जीवन मुस्कराएगा बल्कि पार्थ की तरह भगवान के यन्त्र बनकर अनेकों को खोई मुसकान दे सकेंगे।