लोक और परलोक (Kahani)

March 1989

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सिकन्दर ने अपने जीवन में विपुल सम्पदा एकत्रित की थी। मरने लगा तो उसने अपना सारा खजाना आँखों के सामने खुलवा कर रखा। दरबारियों से कहा ऐसा प्रबन्ध करो कि यह सब इसी रूप में मेरे साथ परलोक जा सके?

बहुत सोचने पर भी ऐसा कोई उपाय न निकल सका तब सिकन्दर ने अपने जनाजे में दोनों हाथ खुले हुए बाहर रखे जाने की व्यवस्था को ताकि लोग समझ सकें कि मनुष्य खाली हाथ ही आता है और उसे खाली हाथ ही जाना पड़ता है।

शिक्षा यह थी कि कोई अनावश्यक संचय के लिए पाप कर्म न करें। जितना समय अनावश्यक संग्रह के लिए लगाया जाता है उतना यदि सत्कर्म में लगाया जा सके तो उससे लोक और परलोक दोनों ही बनते है।


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