हजरत उमर का नौकर उनके सोते समय पंखा झला करता था। एक दिन पंखा झलते झलते नौकर को नींद आ गई हजरत की आँख खुली तो वे सोते हुए नौकर पर पंखा झलने लगे।
उनके मित्र ने जब यह दृश्य देखा तो अचंभा करने लगे। हजरत ने कहा-सोने वाला पंखे का हकदार हैं। नौकर सो गया तो मेरा फर्ज है कि उसकी हवा करूं।
सूर्य भगवान नित्य नियमित रूप में संसार को प्रकाश और ताप देने के लिए परिभ्रमण किया करते थे।
एक दिन उनका मन अपनी आलोचना सुनने का हुआ। संयोगवश कुछ दोष ढूंढ़ने वाले ही सामने आये। एक कह रहा था कि सूर्य कितना अभागा है जिसे एक दिन की भी छुट्टी नहीं मिलती। दूसरा कह रहा था कि इसने पूर्व जन्म में कुछ ऐसे कर्म किये है जिसके कारण सवेरे जन्म और शाम को मरण होता है। तीसरा कह रहा था कि यह आग का गोला है जो न किसी के पास जा सकता है और न किसी को अपने पास बुला सकता है।
इन कटु आलोचनाओं से सूर्य को बहुत बुरा लगा और वे कोने में उदास होकर जा बैठे। पत्नी को कारण मालूम हुआ तो हंसते हुए कहा-छोटा कंकड़ कच्चे पड़े घड़े को फोड़ देता है पर वह जब समुद्र में गिरता है तो डूब जाता है। आप तो समुद्र हो कंकड़ जैसी आलोचनाएँ आपका क्या बिगाड़ सकती है। इस पर ध्यान न दें और अपने महान कार्य में नियम पूर्वक निरत रहें।
इन कटु आलोचनाओं से सूर्य को बहुत बुरा लगा और वे कोने में उदास होकर जा बैठे। पत्नी को कारण मालूम हुआ तो हंसते हुए कहा-छोटा कंकड़ कच्चे पड़े घड़े को फोड़ देता है पर वह जब समुद्र में गिरता है तो डूब जाता है। आप तो समुद्र हो कंकड़ जैसी आलोचनाएँ आपका क्या बिगाड़ सकती है। इस पर ध्यान न दें और अपने महान कार्य में नियम पूर्वक निरत रहें।
एक सेठ सेठानी बड़े सम्पन्न थे उनके एक ही पुत्र था। संयोगवश ऐसा हुआ कि सेठ सेठानी की एक साथ मृत्यु हो गई। बालक छोटा था, सम्पदा बहुत थी। पुराने जमाने की बात है संरक्षक ही देख भाल करते थे और इच्छानुसार अमानत में से अधिकाँश हड़प भी जाते। इस आशंका से सेठ ने बालक के गले में एक हीरे का कंठा बाँध दिया ताकि बड़ा होने पर उसे देखे समझे और अपना कोई व्यवसाय कर सके। बालक की संपत्ति संरक्षकों ने हड़प ली। यहाँ तक कि रोटी के लाले भी पड़ गये। बालक भीख माँग कर गुजारा करने लगा। इसी प्रकार कई वर्ष बीत गये। बच्चे की उम्र चौदह वर्ष के करीब हो गई
एक दिन उसने कहीं टँगे हुए बड़े दर्पण में अपना मुँह देखा, गले में कइ का चमकते पाया उसे हीरे को संबंध में कुछ सुनने को मिल गया था, अनुमान लगाया कदाचित यह हीरे का कंठा हो सकता हैं। उसे माँ बाप ने चतुरता पूर्वक बाँधा हो। घर आकर उसने वह कंठा उतारा उसके सभी दाने साफ करके छिपा कर रख लिये। एक दाने को लेकर वह जौहरियों की दुकानों पर लगवाता फिरा। एक जगह उसे एक लाख रुपये मिलें।
उस राशि से उसने अपना छोटा व्यवसाय आरंभ किया, चलने लगा तो उसे बढ़ाता रहा और हीरे बेच-बेच कर उस पूँजी को व्यवसाय में लगाता रहा। कुछ ही समय में वह उस नगर का धनी मानी सेठ बन गया। बाप की चतुरतापूर्वक दी गई सम्पदा उसके काम आई।
भगवान ने हर किसी को उसे सेठ बालक जैसी स्थिति का बना कर भेजा है। गुण, कर्म, स्वभाव, की उत्कृष्टता ही वह राशि है जिसे भुना कर कोई भी सुविकसित समुन्नत एवं संस्कृत बन सकता है। जब तक इस पूँजी का ज्ञान न हो तब तक उसे भिखारी बन कर दर दर भटकना पड़ता है। पर जब आत्म-बोध हो जाता है, अपनी शक्तियों का सदुपयोग बन पड़ता है तो किसी बात की कमी नहीं रहती।