विश्व में कितने ही स्थान, महल, वस्तुएँ ऐसी है जिनके साथ कोई न कोई अभिशाप जुड़ा हुआ है। जिसने भी इन पर आधिपत्य करना चाहा, असमय ही उसे काल .... लित होना पड़ा। आज भी वह वस्तुएँ अपने निर्माता या उत्पादन कर्ता के दुष्कृत्यों-दुष्कर्मों की स्वभाव में घुली भली-बुरी प्रवृत्तियों के अमिट संस्कारों की कथा गाथा का परिचय .... तब अपने संपर्क में आने वालों को देती रहती है। अनीति पूर्वक दुष्कर्मों द्वारा अर्जित सम्पदाओं के बारे में प्रायः ऐसा ही होता है कि जब तक वह उत्पादन कर्ता के पास रहती है, उसे चैन से बैठने महीं देवी। अपने स्वामी का प्राण हरण करके ही छोड़ती है ऐसी दुरात्माएँ मरणोपरांत भी असंतुष्ट, अतृप्त- .... बनी रहती है और अपनी प्रिय वस्तु के माध्यम से दूसरों को हानि पहुँचाती-नाना प्रकार के संकट उत्पन्न करती रहती हैं। उनके सूक्ष्म संस्कार लम्बे समय तक उन पदार्थों पर छाये रहते हैं और अधिग्रहण करने वालों के लिए प्राण संकट तक खड़े करते देखे जाते है।
बस्वी नामक एक ऐसी ही अभिशप्त कुर्सी है जो अपने निर्माण काल सन् 1702 से लेकर 1177 तक कितने ही लोगों की मौत का कारण बनी। उस कुर्सी पर जो कोई बैठता उसकी किसी न किसी प्रकार से मृत्यु हो जाती। लन्दन से एडिनवरो के रास्ते पर एक पंथशाला, जहाँ यह रखी हुई है। कहा जाता है कि यार्कशापर का बस्बी नामक एक अत्याचारी डकैत जब भी उस पंथशाला में आता था उसी कुर्सी पर बैठता था। जब तक वह जीवित रहा, अपनी उपस्थिति में उस पर किसी को बैठने नहीं दिया। प्रयास करने वालों को मौत के घाट उतार देता। सभी उसके नाम से खौफ खाते थे एक बार बस्बी ने लूट-पाट के गोरख-धंधे में अपनी बुड्ढ़े श्वसुर को भी सम्मिलित करना चाहा निहायत ईमानदार व नेक इंसान था। मना करने पर उसने उस वृद्ध की फावड़े से हत्या कर दी। हत्या के अभियोग में बस्बी को मौत की सजी दी गई। मरने के बाद भी उस दुरात्मा की आसक्ति उस कुर्सी से नहीं छूटी इस घटना के पश्चात भी जो व्यक्ति सराय की उस कुर्सी पर बैठता अज्ञात करणों से उसकी मृत्यु हो जाया करती। अंततः उसका नाम ही मौत की कुर्सी पड़ गया।
“स्टै्रन्ज हैपनिंग्स नामक से सुप्रसिद्ध पत्रकार बाल बेनीस्टर ने लिखा है कि जब वह उक्त सहाय में उसके मालिक से मिले और कुर्सी देखने और उससे जुड़े इतिहास का जानने का आग्रह किया तो अस्तबल के एक कोने में पड़ी वह कुर्सी उन्हें दिखाई गई। बताया गया कि छः वर्ष की अवधि में जब से वह इस होटल के मालिक बने तब से सात व्यक्ति उस कुर्सी पर बैठे और स्वर्ग सिधार गये थे जिसमें दो उनके निकट सम्बन्धी भी सम्मिलित थे। मरने वालों में दो वायुयान कर्मचारी थे जिन्होंने उनका नाम और प्रभाव तो सुन रखा था पर उसे देखा नहीं था। अतः दुराग्रह पूर्वक उस कमरे को खुलवाया और कुछ देर बैठकर उसका लुफ्त उठाया। इसके पश्चात् जब वह अपनी कार में बैठे घर की ओर जा रहे थे कि अचानक उनकी गाड़ी एक पेड़ से टकरायी और वह दोनों वहीं ढेर हो गये।
इस घटना के कुछ दिन बाद ही उस सराय सारजन्ट मेजर नामक एक खिलाड़ी आया और शराब के नशे में धुत वो बस्बी की कुर्सी पर बैठ कर चला गया। तीसरे दिन वह अचानक मृत पाया गया इसके बाद तो होटल मालिक ने उस कमरे के बाहर कुर्सी की भयानकता का पूर्ण विवरण लिखा एक बोर्ड टाँग दिया कि जानकारी होने पर उसके दुष्प्रभाव से अपनी जान न गवानी पड़े। इतने पर भी कुछ दिन बाद समीप ही भवन निर्माण में लगा एक नवयुवक आया और उसकी अभिशप्तता का परीक्षण वापस काम पर लौट गया। कुछ ही क्षण बीते थे कि ईंट ढोने के मंच से वह एकाएक गिरा और मर गया कुछ यही घटना होटल मालिक के दो मित्रों के साथ घटित हुई। तब से कुर्सी को एक कमरे में बन्द कर दिया गया। फिर भी कुछ लोगों में आग्रह पूर्वक कमरा खुलवाया और उस पर बैठे या स्पर्श किया, पर इनमें से बचा कोई भी नहीं। उपरोक्त घटनाओं की छानबीन करने पर बेनीस्टर पुलिस रिकार्डों के आधार पर सत्य पाया है।
इसी तरह की कुछ कहानी ब्रिटिश म्यूजियम में रखी एक ममी की हैं जो अपने में अभिशाप समेटते हुए है। सन् 1164 में अरब देश में एक खुदाई में यह प्राप्त हुई थी। जिसकी सुन्दरता से प्रभावित होकर ब्रिटिश पूँजीपति -बाब सिसरो ने उसे खरीद लिया था। ममी का घर में आना क्या हुआ- मानों सिसरो पर विपत्तियों का भारी पहाड़ टूट पड़ा। दो माह के अन्दर ही व्यापार में उसे जबरदस्त घाटा हुआ जिसके धक्के को वह सहन नहीं कर सका और हृदय घात के कारण उसकी मृत्यु हो गयी यह वज्रपात न केवल मालिक पर टूटा वरन् ममी की देख रेख कर रहे दो नौकर भी अपने-अपने बिस्तरों पर मृत पाये गये। सिसरो के एकमात्र पुत्र को एक ट्रक दुर्घटना में अपने दोनों पैर कटाने पड़े। इन घटनाओं के बाद उसे अभिशप्त समझकर जे.एस.सैम्सन एक फोटो ग्राफर को मुफ्त में ही दे दिया गया जिसने उसके चित्र लिये। फोटो फिल्म धोने के पश्चात् सेम्सन यह देखकर आश्चर्य चकित रह गया कि उसमें एक सुन्दर नव युवती का चित्र उभर आया है। दूसरे दिन से वह भी पागल हो गया और कुछ दिनों के पश्चात् मृत्यु की गोद में सो गया। दुःखी एवं भयभीत पत्नि ने तब उस ममी को ब्रिटिश म्यूजियम को सौंप दिया लेकिन वहाँ भी ममी के साथ-साथ मौत का साया बराबर छाया रहा छूने-और फोटो लेने वालों को त्रास देता रहा।
उक्त घटनाओं को देखकर म्यूजियम के अधिकारियों ने ममी का चित्र लेना आदि वर्जित कर दिया साथ ही पुरातत्व वेत्ताओं का इतिहास खोजने के लिए कहा। पर्यवेक्षण कर्ताओं ने पाया की ममी मिश्र की एक महिला की थी जिसने अनैतिक विपुल संपदा एकत्र की थी पर अंतिम दिनों में संपत्ति दूसरों द्वारा हड़प लिये जाने पर पगलाकर मर गई थी। मरणोपरान्त उसे जिस ताबूत में बन्द किया गया था उसको छूने-छेड़ने वालों में से कितने ही व्यक्तियों का अपने जीवन से हाथ धोना पड़ा।
ब्रिटेन की ही एक अन्य घटना का वर्णन अपनी इस पुस्तक “स्टे्रज हैपनिंग्स” में किया है। उसके अनुसार वन विभाग के तत्कालीन अध्यक्ष को एक मकान से सुन्दर चित्र मिला जो नीले पेपर पर काले रंग से बनाया गया था। ध्यान से देखने पर उसमें से बिल्ली जैसी दो आंखें घूरती हुई दृष्टिगोचर होती थी। शयन कक्ष की शोभा सज्जा बढ़ाने की दृष्टि से अध्यक्ष ने उसे अपने कमरे में टाँग लिया। कुछ ही दिन बीते थे कि उसने आत्महत्या कर ली। पत्नि को मृत्यु का रहस्य समझते देर न लगी और उसने चित्र को काउंट एलेक्जेण्डर नामक व्यक्ति को बेच दिया। उसका भी यहीं हश्र हुआ। जब भी वह उस चित्र की और देखता तो खूंख्वार हिंस्र आंखें घूरती हुई नजर आती। एक दिन विक्षिप्तावस्था में उसने स्वयं को गोली मार ली। इसके बाद तो आत्महत्याओं का ताँता लग गया। काउंट के बाद उसका युवा पुत्र, एक रिश्तेदार क्रमशः आत्मघात कर बैठे दोनों ने ही अपने-अपने संग्रह की शोभा बढ़ाने के लिए रखना चाहा था।
वस्तुतः वह चित्र जहाँ से उपलब्ध हुआ था, वह एक ऐसे अपराधी गिरोह के सरदार का घर था जो अपनी नृशंसता के लिए कुख्यात था जिसका पूरा विवरण वहाँ इन्टेलीजेन्स डिपार्टमेन्ट में दर्ज था। खोज कर्ताओं का कहना हैं कि वह रहस्यमय चित्र उस गिरोह का कोई संकेत था जिसके माध्यम से उन्हें अनेकों अपराध कर्मों में सहायता मिली थी। गिरोह का सरदार उसे सदैव अपने पास रखता था कि यहीं कारण था कि मरने के बाद भी उसकी आसक्ति उक्त चित्र के बराबर रही और जहाँ भी, जिन भी हाथों में वह गया, उन्हें उस दुरात्मा की क्रूरता का शिकार बनना पड़ा।
स्थानों एवं वस्तुओं से जुड़े हुए जितने भी अभिशप्त घटनाक्रम अभी तक प्रकाश में आये है वे मात्र संयोग नहीं है, उनके पीछे कुसंस्कारों की प्रबलता, उनका स्थान विशेष पर प्रभाव एवं क्रूरता के साथ जुड़ा हुआ होना है। ये घटनाक्रम सतत् प्रेरणा देते रहते है कि बिना प्रायश्चित किये स्थान अथवा वस्तु को सुसंस्कारित किये दुष्कर्मजन्य कुसंस्कारों से पीछा नहीं छुड़ाया जा सकता। यह एक शाश्वत सत्य है, था और आगे भी रहेगा।