साधारणतया मनुष्य को अपने निकट परिसर की तथा सम्बन्धित वस्तुओं और घटनाओं की ही जानकारी रहती है। वर्तमान से अधिक भविष्य तथा विगत जन्मों की घटनाओं का उसे ज्ञान नहीं होता। यह एक सीमित दिशा में देख, सुन, समझ, सोच सकता है। जो उसका सम्बन्ध असीम सत्ता से है। किन्तु इसकी भी जानकारी प्रत्येक मनुष्य को कहा रहती है। कुछ ऐसी घटनाएँ दैनिक जीवन में यदा कदा घट जाती है जिनके आधार पर कहा जा सकता है कि मनुष्य में कोई विलक्षण शक्ति कार्य करती है जो भूत, भविष्य, वर्तमान में झांकने की शक्ति रखती है। जिसके आधार पर मनुष्य को त्रिकालदर्शी होने तथा पूर्वाभास, भविष्य दर्शन, भविष्य कथन करने की शक्ति प्राप्त हो जाती है। कितने ही व्यक्तियों में यह अनायास उभरती है। कितने ही प्रयत्न पूर्वक उसे विकसित कर लेते है।
पृथ्वी की ऊपरी परत को देखने से तो ऐसा लगता है कि उसमें घास-पास, वृक्ष वनस्पति उगाने भर की क्षमता है किन्तु उसकी गहराई में खोदने पर बहुमूल्य रत्न राशि मीठे तत्व का अगाध महासागर तथा अनेकों प्रकार की बहुमूल्य खनिज सम्पदा छिपी पड़ी मिलती है। ठीक इसी प्रकार शरीर की दृश्य श्रम शक्ति और मनन चिन्तन की शक्ति से भी परे गहराई में जाने पर उन क्षमताओं का अस्तित्व सामने आता है जिन्हें अतीन्द्रिय क्षमता अथवा दैवी अनुकम्पा के नाम से जाना जाता है। वस्तुतः वह व्यक्ति की अविज्ञात उच्च स्तरीय सामर्थ्य ही है, जिसे प्रयत्नपूर्वक जाग्रत किया और बढ़ाया जा सकता है। इन समस्त अलौकिक क्षमताओं के केंद्र व्यक्ति के मस्तिष्क में विद्यमान है जो चेतना से सम्बन्धित है तथा अतिसूक्ष्म है। ये व्यष्टि सत्ता को समष्टि से जोड़ते है।
प्रयत्न पूर्वक अतीन्द्रिय क्षमता विकसित कर लेना एक विज्ञान सम्मत प्रक्रिया है किन्तु जब यह शक्ति स्वयमेव उभरती है और भूत भविष्य की घटनाओं की जानकारी सामने आती है तब अनायास कोई विज्ञान सम्मत समाधान नहीं सूझ पड़ता है। अतः चमत्कार मानने पर लोगों को विवश होना पड़ता है। जबकि होता यह है कि किन्हीं व्यक्तियों के पास पूर्व संचित ऐसे संस्कार होते है जो परिस्थितियों वश अनायास ही उभर आते है। वर्षा के दिनों में ऐसे कितने ही पौधे घास पास के रूप में उपज पड़ते है, क्योंकि उनके बीच जमीन में पहले से ही दबे पड़े रहते है। यही बात उन व्यक्तियों पर लागू होती है, जो बिना किसी प्रकार की अध्यात्म साधनाएँ किये अलौकिक क्षमताओं का परिचय देने लगते है।
पिछले दिनों इस क्षेत्र में काफी शोध अनुसंधान हुआ है और उन प्रयासों के फलस्वरूप उपयोगी निष्कर्ष भी सामने आये है। परामनोविज्ञान, मैटाफिजिक्स, डाइकोसाइबरनेटिक्स, साइकोलाइनेसिस जैसी कितनी ही चेतनात्मक विधाएँ अब रेडियो, इलेक्ट्रानिक्स, कम्प्यूटर विज्ञान आदि की तरह विकसित हो रही है। अचेतन मन, सुपर माइण्ड आदि की सामर्थ्य के सम्बन्ध में जैसे-जैसे जानकारियों के परत खुल रहे है वैसे स्पष्ट होता जा रहा है कि साधारण सा लगने वाला मनुष्य असीम-अनन्त शक्तियों क्षमताओं का भण्डार है। कठिनाई मात्र इतनी भर है कि उसकी अधिकांश अंतः शक्तियाँ प्रसुप्त अविज्ञात स्थित में पड़ी है जिन्हें अब तक जाग्रत होने का उसने अवसर ही नहीं प्रदान किया। जन्म-जन्मान्तरों के अथवा वर्तमान जीवन में एकत्रित कषाय-कल्मषों की मोटी परत को हटाना यदि संभव बन पड़े तो हम में से हर कोई अतीन्द्रिय सामर्थ्यों का पुंज दृष्टिगोचर होगा।
पाश्चात्य परामनो विज्ञानियों ने अतीन्द्रिय क्षमताओं को चार मुख्य भागों में विभक्त किया है (1) परोक्ष दर्शन अर्थात् वस्तुओं और घटनाओं की वह जानकारी जो ज्ञान प्राप्ति के सामान्य आधारों के बिना ही उपलब्ध हो जाती है (2) भविष्य ज्ञान बिना किसी मान्य आधार के भविष्य के गर्भ में झाँककर घटनाओं को घटित होने से पूर्व जान लेना (3) भूत कालिक ज्ञान। (रिट्रोकोग्नीशन) बिना किसी साधन के अविज्ञात भूतकालीन घटनाओं की जानकारी (4) टेलीपैथी - अथवा विचार सम्प्रेषण-बिना किसी आधार अथवा यंत्र के अपने विचार दूसरों के पास पहुँचाना तथा दूसरों के विचार ग्रहण करना। इनके अतिरिक्त भी साइकोकाइनेसिस, हिप्नोसिस साइकिक फोटोग्राफी हाऊसिंग, “आईलैस”। साइट, बायोरेपर्ट जैसी अनेकानेक विधाएँ है जो दर्शाती है कि अतींद्रिय सामर्थ्य का, इ.एस.पी. का क्षेत्र कितना बड़ा है।
शास्त्र कारों ने इसका आधार विज्ञान मय कोष को माना और उसे विशिष्ट क्षमता सम्पन्न बताया है। जिसका केन्द्र अचेतन मन है। इसका आधार प्राण विद्युत को माना गया हैं। यह एक ऐसा चुम्बक है जो सांसारिक जीवन में प्रभावोत्पादक शक्ति एवं प्रतिभा के रूप में दृष्टि गोचर होता है। उनका कहना है कि इस तत्व को यदि अधिक सक्षम बनाया जा सके तो कितनी ही विशेषताएँ उत्पन्न हो सकती है, जिनसे व्यक्तित्व में असाधारण परिवर्तन संभव है। इस ऊर्जा में वह शक्ति है जो सूक्ष्म जगत के प्रवाहों को अपनी ओर मोड़ सकने, और उसके संपर्क से कई महत्वपूर्ण कार्य सिद्ध कर सकने की सामर्थ्य रखती है। विज्ञानमय कोष को साधने उसे परिष्कृत, परिमार्जित करने के उपाय-उपचारों का आश्रय लेकर अतींद्रिय क्षमताओं का विकास किया जाना संभव है, वैज्ञानिक अब इस तथ्य को स्वीकारने लगे है।
इस संदर्भ में अमेरिकी मनोवैज्ञानिक डा. नेलसन बोल्ट का कथन है कि मनुष्य के अन्दर एक बलवती आत्म चेतना रहती है, जिसे जिजीविषा या प्राणधात्री शक्ति कह सकते हैं। यह न केवल रोग निरोधक एवं अस्तित्व संरक्षण के अविज्ञात साधन जुटाती हैं वरन् चेतना जगत में चल रही उन हलचलों का पता लगा लेती है जो संकट या विपत्ति बन कर अपने या अपनों से संबंधित परिजनों पर आ सकती हैं। सुख-सुविधा जैसी परिस्थितियों के संकेत अविज्ञात से भले ही न मिले किन्तु अनिष्ट की आशंका या अस्तित्व के संकट की सूचना अविज्ञात के अंचल से मिलती रहती है। इससे यह सिद्ध होता है कि दृश्य जगत से परे कोई परम चेतन सत्ता विश्व ब्रह्मांड की संतुलन व्यवस्था, कर्म बद्धता, बनायें हुए है और उसका संचालन संरक्षण सतत् करती रहती है।
सुविख्यात परामनोविज्ञानी डा. हैराल्ड के अनुसार यह आवश्यक नहीं कि पूर्वाभास के संकेत स्वप्न, तन्द्रा या निद्रावस्था में ही मिलते हो। अपितु जाग्रत और चेतन अवस्था में ही कितनी ही बार मनुष्यों को ही नहीं वरन् पशु पक्षियों तथा अन्य जीवधारियों तक को संकटों से बचने जीवन रक्षा के संकेत प्रकृति से मिलते रहते है, जिनका सामयिक परिस्थितियों से कोई संबंध नहीं होता। पूर्वाभास के संबंध में दो व्यक्तियों की परस्पर सघन आत्मीयता का बहुत बड़ा हाथ रहता है। जर्मन मनः शास्त्री डा. हेमब्रुक ने अपने शोध निष्कर्षों में इस बात का उल्लेख किया है कि अतींद्रिय क्षमता शक्ति पुरुषों की अपेक्षा नारियों में अधिक पाई जाती हैं, क्योंकि उनके स्वभाव में में कोमलता हृदय में करुणा, दया, ममता, उदारता जैसे सद्गुणों का बाहुल्य रहता है। इसी कारण नारियों को अध्यात्म क्षेत्र में अधिक शीघ्र सफलता भी मिलती है।
योगशास्त्रों में वर्णित है कि सतत् साधना एवं योगाभ्यास करते-करते मनुष्य में दिव्य शक्तियों का प्रादुर्भाव होने लगता है कि जिन्हें सिद्धियों के नाम से जाना जाता हैं। दिव्य दर्शन, दिव्यश्रवण, दूर दृष्टि भूत भविष्य कथन, महिमा, लघिमा, गरिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व, वशित्व आदि अनेकों सिद्धियों का उल्लेख हैं। वैज्ञानिक आधारों के अभाव में अब तक इन्हें कल्पित माना जाता था, किन्तु अनेकानेक घटनाक्रमों, सिद्धि अवस्था को प्राप्त महामानवों ऋषिकल्प व्यक्तित्वों का विश्लेषण-परीक्षण करने पर वैज्ञानिकों ने पाया है कि अतीन्द्रिय सामर्थ्य केवल कहने सुनने तक सीमित नहीं है वरन् यह तथ्य पूर्ण और विज्ञानसम्मत प्रक्रिया है। मनोनिग्रह योग-साधना की विविध प्रक्रियाएँ अपनाकर इन्हें उभरा जा सकता है और उसके द्वारा विश्व-ब्रह्माण्ड में संव्याप्त परम चेतना से तादात्म्य स्थापित कर लाभान्वित हुआ जा सकता है।