उद्धत अहंकार की परिणति-विनाश

March 1989

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शाहजहाँ अपने समय का सुविख्यात प्रतिभावान व्यक्ति था। उसका पराक्रम, कौशल और व्यक्तित्व तीनों ही बढ़े-चढ़े थे। उसने अपना राज्य बढ़ाया और कई तरह की सफलताएँ पाई। पर यहाँ चूक गया कि उपार्जित संपदाओं एवं सफलताओं का उपयोग कहाँ किया जाय? “उसने अपने बैठने के लिए तख्त ताऊस” बनवाया और अपनी बीबी की कब्र के रूप में ताजमहल खड़ा किया। यह दोनों ही रचनाएँ अद्भुत थी।

शाहजहाँ का रत्न प्रेम प्रसिद्ध है। उसने विश्व प्रसिद्ध कोहिनूर हीरा भी ग्वालियर नरेश से प्राप्त किया था। मोर की आकृति का एक बहुमूल्य सिंहासन भी उसने अपने बैठने के लिए बनवाया था, जिसका नाम “तख्त ताऊस” था। उसकी लागत इस समय के 12 करोड़ रुपया थी। यह स्वर्णखचित था। बहुमूल्य रत्नों से वह जड़ा था। पन्ना के बने पाँच खंभे उसमें थे। शाहजहाँ के बाद वह औरंगजेब के पास और अन्त में मुहम्मद शाह के कब्जे में रहा।

ईरान के बादशाह नादिरशाह ने काबुल जीत लेने के बाद भारत पर चढ़ाई करदी और मुहम्मदशाह को परास्त कर दिया। जो विपुल सम्पत्ति नादिरशाह ने लूटी उसमें तख्त ताऊस भी शामिल था। इसे लेकर वह वापस लौट ही रहा था कि कुर्दों ने उसकी हत्या कद दी और लूटी हुई सम्पत्ति भी उन लुटेरों ने आपस में बाँट ली। तख्त ताऊस के भी टुकड़े करके बँट गये। बहुत समय बाद नादिरशाह के वंशजों ने लुटेरों को पकड़ा और लूटी हुई सम्पत्ति उगलवाली जिसमें तख्त ताऊस के टुकड़े भी शामिल थे। उन्हें जोड़-मोड़कर फिर लगभग पहले जैसा ही उसे बना लिया गया यद्यपि बहुत से बहुमूल्य रत्न उसमें से गायब हो चुके थे।

अठारहवीं सदी में वह सिंहासन अँग्रेजों के हाथ लगा। उसे पूर्ण गोपनीयता के साथ लंका के त्रिणकोंमाली बन्दरगाह से जलयान पर चढ़ाकर इंग्लैंड रवाना किया गया। वह जहाज सही सलामत इंग्लैंड रवाना किया गया। वह जहाज सही सलामत इंग्लैंड नहीं पहुँच सका। 4 अगस्त 1772 को पूर्वी अफ्रीका के समुद्र में चट्टानों से टकराकर वह डूब गया, साथ ही वह उन दिनों बीस करोड़ रुपया कीमत का आँका गया सिंहासन भी।

इसके बाद समुद्र तल से उसे निकालने के अनेकों प्रयत्न किये जाते रहे। 1162 में कुछ रत्न, सोना और अवशेष प्राप्त कर लिए गये। इससे यह अनुमान तो लग गया कि वह किस क्षेत्र में डूबा पड़ा है, पर तब से अनेक प्रयत्न करने पर भी उसका पूरा पता कहीं भी नहीं चला वह रत्न राशि अभी भी कहीं अविज्ञात स्थान में डूबी पड़ी हे।

डूबा हुआ “तख्त ताऊस” अपनी मौन भाषा में अभी भी प्रतिभाशाली व्यक्तियों को एक सन्देश देता है कि आप लोग बड़े समझे जाते और समर्थ होते हुए भी इतनी अदूरदर्शिता का परिचय क्यों देते है? जिसमें प्रतिभा कला और सम्पदा का मात्र दुरुपयोग ही बन पड़ता है।

जितना धन, श्रम और कौशल “तख्त ताऊस” के बनाने में लगाया गया उसका प्रयोजन इतना भर था कि एक राजा की बढ़ी-चढ़ी सफलता का, बढ़े चढ़े भाग्यवान का अहंकारी प्रदर्शन कर सके। यह क्यों भुला दिया गया कि इस उद्धत अहंकार की पूर्ति में जितना श्रम लगाया गया था उतने से सार्वजनिक प्रगति के अनेकों उपयोगी कार्य चल सकते थे और उससे पीड़ा और पतन के निवारण में, जन-जीवन के परिष्कार में भारी मदद मिल सकती थी।

उद्धत अहंकारी प्रदर्शन ने अनेकों के मस्तिष्क लालच से खराब कर दिये। उसे झपटने के लिए कितनों ने आक्रमण किये और कितनों को अपना विनाश देखना पड़ा। अनावश्यक मात्रा में संग्रहित सम्पत्ति दुष्प्रवृत्तियों की कितनी बड़ी श्रृंखला रखकर खड़ी करती है और अन्त में किस प्रकार नष्ट होती है इसका जीता जागता उदाहरण “तख्त ताऊस” है।


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