सम्राट अशोक ने बुद्ध धर्म के प्रचार के लिए सौ करोड़ मुद्राएँ दान करने का संकल्प लिया था। उसके हाथ जितना पैसा आता उसे तत्काल निर्धारित प्रयोजन के लिए भेजा जाता।
अशोक बुद्ध हो गये। उनकी सम्पदा पर दूसरों का अधिकार हो गया। अब कुछ दे सकने की स्थिति में वे न थे। मरते समय उनने आसपास की सारी सामग्री पर नजर दौड़ाई किन्तु सूखे आंवले के अतिरिक्त उनके पास और कुछ भी न था। उनने वह आँवला ही बिहार भेज दिया। उस दिन बनी दाल में उस आंवले को पीसकर डाल दिया।
सबने एक स्वर में घोषणा की कि अशोक के संकल्प में अब कुछ भी कमी नहीं रही। उन्होंने, जो कुछ था उसका सर्वस्व दान कर दिया।