धनी सेठ का स्वर्गवास हुआ तो अगले जन्म में बकरा हुआ। दुकान से उसे बहुत मोह था। सो भाग दौड़ कर उसी को देख भाल के लिए चला आता और बेटे को हानि न होने देने के लिए चौकीदारी करता था।
बकरे को दुकान पर बार-बार आते देख कर बेटे को क्रोध आया और उसने पीठ पर दंडा जमाया ताकि दुबारा उधर न आय।
एक संन्यासी उधर से निकले उनने बकरे को पूर्व जन्म का ज्ञान कराया और कहा परिवार का अनावश्यक मोह करने में पिटने के अतिरिक्त और कुछ हाथ नहीं आता।