बिना त्याग किये (Kahani)

March 1989

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एक चींटी चीनी के कारखाने में रहती थी नित्य भर पेट मीठा खाती और प्रसन्न रहती। एक दिन उसकी उस चींटी से भेंट हुई जो नमक के गोदाम में रहती थी और उस खारी पदार्थ से ही ज्यों त्यों करके पेट भरती।

चीनी गोदाम वाली चींटी ने अपने यहाँ की सुविधा का वर्णन किया तो नमक वाली चींटी के मुँह में पानी भर आया। शैली हमें भी अपने यहाँ ले चलो न, जो तुम खाती हो उसका आनन्द हमें भी दिलाओ न।

वह तैयार हो गयी। नमक वाली चींटी को साथ लाई और चीनी से भरे गोदाम को दिखाकर कहा-इसमें से जितना चाहों मन भर कर खाओ।

वह बहुत देर जगह-जगह घूमती रही पर उसे मिठास कहीं नहीं मिला। शिकायत की कि यहाँ भी तो नमक ही है, चीनी कहाँ है?

पहले वाली चींटी चकित रह गई। इसका कारण तलाश किया। मालूम हुआ कि दूसरी चींटी अपने घर से ही मुँह में नमक भर कर चली थी।

चीनी वाली ने कहा - पहले अपना मुँह खाली करों। इसके बाद चीनी का स्वाद चखना। बिना त्याग किये ऊँची उपलब्धियाँ किसी को मिलती कहाँ है?


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