चित्त शान्त हुआ (Kahani)

March 1989

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

एक राजा था। महल में सोने के पलंग पर सोया हुआ था। गहरी नींद आई तो सपना देखने लगा।

देखा, वह भिखारी हो गया है। दुर्भिक्षग्रस्त क्षेत्र में दरिद्र लोगों के यहाँ भीख माँ रहा है। भूख की पीड़ा उससे सहन नहीं हो रही थी। ज्यों त्यों करके एक जून की खिचड़ी पकाने लायक धान्य मिला। मिट्टी के बर्तन में उसे पकाया और ठंडी करने के लिए केले के पत्ते पर फैलाया।

इतने में देखता है कि दो दुर्दान्त साँड़ लड़ते हुए उसके समीप आये। उन्होने खिचड़ी रौंद डाली। साथ ही वे परस्पर का मल्ल युद्ध छोड़ कर भिखारी बने राजा पर चढ़ दौड़ें सींगों पर उठा उठा कर उसे कई बार पटका।

राजा इस भयंकर स्वप्न से हड़बड़ा गया। उसकी घिग्घी बंध गई। पलंग पर बैठ गया और बदहवास जैसी हरकतें करने लगा।

रानियाँ दौड़ी आई इस प्रकार की बेचैनी का कारण पूछा जाने पर उसके मुँह से तो कुछ शब्द भी न निकल रहे थे।

जब चित्त शान्त हुआ तो उत्तर देने के स्थान पर उपस्थित जनों से पूछना आरंभ किया कि “यह सपना है या वह सपना था” और तो कोई कुछ न कह सका पर विचारशील मंत्री ने कहा - राजन् यह दोनों ही सपने है। जब आप जागृति में होंगे तो अपने का आत्मा के क्षेत्र में रमण करता हुआ पायेंगे।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles