साम्यवाद के जन्मदाता महर्षि कार्लमार्क्स अपना अमर ग्रन्थ कैपीटल लिखने में लगे हुए थे। उन्हें पूरा समय पुस्तकालयों से नोट एकत्रित करने में लगाना पड़ता था। परिवार निर्वाह एक समस्या थी। उसका हल हुए बिना न बच्चों का पालन होता था, न साहित्य सृजन की सामग्री जुटती थी मार्क्स की धर्मपत्नी ने वह कार्य अपने ऊपर ओढ़ा। वे घर का काम बच्चों का पालन तो करती ही थी साथ ही उनने एक सस्ते दाम में चल सकने वाला ग्रह उद्योग आरंभ किया। वे कबाड़ियों के यहाँ से पुराने कोट खरीद के लाती। उनमें से छोटे बच्चों के कई तरह के कपड़े बनाती और फिर उन्हें सिर पर रखकर गरीबों के मुहल्लों में बेचने जाती। पति के आदर्शवादी कार्य में सहायता करने के लिए उतना कठिन श्रम करना उनने ने खुशी-खुशी स्वीकार किया। इसी सहायता के बल पर मार्क्स इतना महान कार्य सम्पन्न कर सकें।