धूर्तता के बल पर (Kahani)

March 1989

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मठ के पड़े महन्त तीर्थ यात्रा पर गये। एक शिष्य को अपना स्थानापन्न बना गये थे। अनुपस्थिति में भी चढ़ावे के पैसे और मिष्ठान पकवान की भरमार होती रही।

शिष्य सोचने लगा कि महन्त को यहाँ से भगाया जा सके और वह स्थान मुझे बैठने के लिए मिल जाए तो अच्छी जिन्दगी कटे। वह उसी के लिए तरकीब ढूँढ़ने लगा। तो एक दांव−पेंच उसकी समझ में भी आ गया।

उसने अफवाह फैला दी कि महन्त जी को तीर्थ यात्रा के बीच भारी सिद्धि मिल गई है। उनकी दाढ़ी के हर बाल में ऐसी करामात उत्पन्न हो गई है कि उसे कोई ताबीज में बन्द करके रख ले तो सभी मनोकामनाएँ पूर्ण हो जाय। इस क्षेत्र के सभी लोग महन्त जी के आगमन के प्रतिक्षा करने लगे।

आने पर आवभगत बाद सभी ने एक-एक बाल मांगना शुरू कर दिया। हजारों बाल उखाड़-उखाड़ देने में वे आना कानी करने लगे। तो भीड़ टूट पड़ी और महन्त जी के सिर के ही नहीं दाढ़ी के बाल भी नोंच डाले। वे लहू लुहान हो गये।

महन्त जी ने समझ लिया कि अब यहाँ ठहरने में खैर नहीं। अन्यत्र पदार्पण कर गये। शिष्य ने अपनी धूर्तता के बल पर उस मठ पर कब्जा जमा लिया।


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