उन क्षेत्रों में फूस क बने झोपड़ों में ही लोग गुजारा करते थे। माचिस का प्रचलन था नहीं। भोजन पकाने के लिए चूल्हें में आग सुलगा कर रखनी पड़ती थी। तेज हवा चलने पर चूल्हें की आग उड़कर झोपड़ी में लगती और उन्हें जलाकर राख कर देती। आच्छादन विहीन अनेकों हो जाते और प्रजाजनों का भारी कष्ट सहन करना पड़ता। कारण इसका एक ही था चूल्हे में सुरक्षित रखी आग को दाब ढक्कन न रखा जाता।
राजा विमबसार उस क्षेत्र के शासक थे। आये दिन की अग्नि दुर्घटनाओं पर उन्हें गंभीरता पूर्वक विचार करना पड़ा। कानून बनाया गया कि जिसके घर में आग लगेगी एक वर्ष श्मशानवास करना पड़ेगा। इस अनुबंध से सतर्कता बढ़ी और दुर्घटनाएँ कम होने लगी।
संयोगवश राजमहल के एक फूस से बने कक्ष में आग लगी और वह राख हो गया।
राजा ने उस नियम को अपने पर भी लागू किया और वे एक वर्ष तक स्वेच्छापूर्वक श्मशान में रहे।
मंत्रियों ने कहा भी कि कानून तो प्रजा के लिए है राजा पर लागू नहीं होते। आप महल में ही रह सकते है पर राजा ने उस परामर्श को यह कहकर अस्वीकार कर दिया कि यदि राजा अपने बनाये कानूनों पर स्वयं चलेंगे तो प्रजा उनका पालन क्यों करेगी?