राजकुमार कृतघ्न था (Kahani)

March 1989

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दो इतिहास वेत्ताओं में विवाद चल रहा था कि रामायण का घटनाक्रम प्रामाणित है या नहीं? वह इतिहास है या काव्य?

तीसरे मध्यस्थ की सम्मति पूछी गई तो बोला, कि न तो मैं राम के समय में मौजूद था और न उसे लिखने वालों के साथ रहा हूँ। इसलिए उसकी ऐतिहासिक प्रामाणिकता के संबंध में तो कुछ नहीं कह सकता, पर इतना अपने अनुभव से कह सकता हूँ कि रामायण पढ़ने से मेरे जीवन पर भारी प्रभाव पड़ा है और उसके कारण सुधार परिवर्तन में भारी योगदान मिला है। इस दृष्टि से तो रामायण को प्रामाणित ही मानता है।

एक राज कुमार बड़े दुष्ट स्वभाव का था। एक दिन वह बाढ़ के पानी में बहने लगा। किसी ने उसे बचाया नहीं।

नदी में एक लट्ठा बहता जा रहा है। बाढ़ में पड़े हुए एक साँप और चूहे ने उस लट्ठे पर सवारी गाँव ली थी वह लट्ठा राज कुमार के हाथ भी पड़ गया वह भी उसे पकड़ कर तैरने लगा।

नदी तट पर साधु रहता था। उसने लट्ठे पर सवार तीन प्राणियों को बहते देखा तो दया वश वह नदी में कूद पड़ा और लट्ठे को घसीट कर किनारे पर ले आया। उन्हें अपनी झोपड़ी में ले गया। वे सर्दी से काँप रहे थे। उनकी ठंड छुड़ाने के लिए उसने आग जलाई जो पास में था वह भोजन कराया और उनके स्वस्थ हो जाने पर विदा किया। साँप ने कृतज्ञता व्यक्त की और कहा मैं पड़ोस में ही रहूँगा आपके दर्शन करता रहूँगा। मेरे पास कुछ धन है जब आपको जितनी आवश्यकता पड़ा करेगी उतना देता रहूँगा।

चूहे ने कहा आपने मेरे प्राण बचाये है। मैं आपके लिए ईधन जुटाता रहूँगा। पेड़ की टहनियाँ काट काट कर झोपड़ी के क्षेत्र में ढेर लगाता रहूँगा।

राजकुमार कृतघ्न था उस को इस बात का बहुत बुरा लगा कि उसका उचित सम्मान सत्कार नहीं मिला उसने पत्थर फैंक कर साधु की झोपड़ी उखाड़ कर फिंकवा दी।

उपकार भी हर किसी के साथ में नहीं करा चाहिए।


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