दिव्य दर्शन पर आधारित भविष्य कथन

March 1989

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विश्व के मूर्धन्य विचारक, मनीषी, ज्योतिर्विद् और अतीन्द्रिय द्रष्टा अब इस सम्बन्ध में एकमत है कि युग परिवर्तन का समय आ पहुँचा। सन् 1171 से सन् 2000 तक का समय इन सभी के अनुसार युगसन्धि की वेला हैं ऐसे ही अवसरों पर अनीति, अराजकता, अन्याय और परिस्थितियों की विषमता अपनी चरम सीमा पर पहुँच जाती है। एवं ईश्वरीय सत्ता इन असन्तुलन को सन्तुलन में बदलने के लिए कटिबद्ध होती है। दिव्यदर्शी परोक्ष जगत में चल रही, व्यापक परिवर्तनकारी हलचलों को देखने एवं भविष्य का पूर्वानुमान करने में समर्थ होता है।

मोटे तौर पर इन भविष्य वाणियों के चार आधार माने जा सकते है-(1) दिव्य दृष्टि सम्पन्न भविष्य के गर्भ में झाँकने में समर्थ मनीषी जनों के वचन, जो अन्तः स्फुरणा पर आधारित होते है। (2) ज्योतिर्विज्ञान एवं फलित ज्योतिष की गणनाओं पर आधारित भविष्यवाणियाँ (3) बाइबिल, कुरान, पुराण, रामायण, गीता, श्रीमद् भागवत जैसे धर्मशास्त्रों में उल्लिखित भविष्य वाणियाँ (4) आज की परिस्थितियों के आधार पर, कम्प्यूटर, आँकड़ों के विश्लेषण के माध्यम से किया गया भविष्य विज्ञानियों-(फ्यूचरालॉजिस्ट) द्वारा आकलन एवं इस विद्या से जुड़ी हुई संस्थाओं द्वारा किया गया अध्ययन।

उपरोक्त चारों ही आधारों को लेकर चलें और आज की परिस्थितियों का विवेचन करें तो हम पाते है कि उपर्युक्त सभी विचार धाराएँ एक ही निष्कर्ष पर पहुँचती है कि मानव जाति का भविष्य अभी भले ही अन्धकारमय नजर आता हो, परन्तु है सुनिश्चित रूप से उज्ज्वल ही। दृश्यमान प्रतिकूलताएँ निश्चित ही निरस्त होंगी। सघन तमिस्रा मिटेगी एवं नवयुग का अरुणोदय होगा।

अतीन्द्रिय क्षमता सम्पन्न मनीषियों के अभिवचनों का जब हम मूल्यांकन करते है तो यह पाते है कि इनमें से अधिकाँश के भविष्य कथन समयानुसार सही निकले। अंतर्दृष्टि के सहारे किये जाने वाले भविष्य कथनों में गणित की आवश्यकता नहीं पड़ती। यह तो दिव्य सामर्थ्य है जिसके सहारे परोक्ष जगत पर पड़े रहस्यमय पर्दे को हटाया जा सकता है और वह जाना जा सकता है। जो सामान्यतया चर्मचक्षुओं अथवा उपकरणों द्वारा संभव नहीं। अदृश्य दर्शन की दिव्य दृष्टि भविष्य के गर्भ में पक रही खिचड़ी की गन्ध लेकर यह बता सकती है कि उसमें क्या उबल रहा है और पक कर किस रूप में क्या आने वाला है? यह दिव्य क्षमता किन्हीं-किन्हीं में पूर्व संचित संस्कारों के कारण अनायास ही जग पड़ती है अथवा योग साधना द्वारा साधन स्तर के व्यक्ति इन्हें जाग्रत विकसित कर लेते हैं। सभी अदृश्य दर्शियों को योगी ऋषि तो नहीं कह सकते पर भविष्य दर्शन की विशिष्टता के कारण उन्हें मनीषी तो कहा ही जा सकता है।

ऐसे मनीषियों में जिन्हें मूर्धन्य माना जाता रहा है, वे है-आज से 400 वर्ष पूर्व जन्मे फ्रेंच चिकित्सक नोस्ट्राडेमस, फ्राँस के ही नार्मन परिवार में जन्मे श्री काउण्ट लुईहेमन, जिन्हें “कीरो” नाम से भी जाना जाता हैं प्रख्यात जर्मन दार्शनिक शोपेन हावर, इंग्लैंड के याकषायर में 16 वीं शताब्दी में जन्मी मदर शिप्टन, अमेरिका की सुविख्यात परामनोवेत्ता श्रीमती जीन डिक्सन, प्रसिद्ध अमेरिकी गुहयविद् एगर केसी, इजराइल के देवदूत की संज्ञा प्राप्त मनीषी प्रोफेसर हरार एवं वर्ल्डवाइड चर्च आफ गाड के अध्यक्ष और “प्लेन टुथ” पत्रिका के सम्पादक हर्बर्ट डब्ल्यू0 आर्मस्ट्राँग आदि इन सभी की गणना मूर्धन्य दिव्य दर्शियों में की जाती है। भारतीय मनीषियों में महर्षि अरविंद एवं स्वामी विवेकानन्द के नाम अग्रणी है। इस्लाम धर्म के ख्याति लब्ध विद्वान सैयद कुत्व की गणना भी इसी वर्ग में की जाती है। वस्तुतः ये कुछ गिने चुने उप मनीषियों के नाम के नाम है जिन्होंने अपनी अंतर्दृष्टि के आधार पर भविष्य के संबंध में जो देख और कहा वह प्रायः शत प्रेषित सच साबित हुआ। आगे भी अनेक कथनों के फलितार्थ में बदलने की संभावनाओं को सुनिश्चित माना जा सकता है।

अदृश्य दर्शियों-भविष्यवक्ताओं में सबसे प्रमुख एवं प्राचीन नाम नोस्ट्राडेमस का आता है। वह पेशे से एक चिकित्सक थे। सन् 1803 में जन्मे इस व्यक्ति को अपने जीवनकाल में तो कोई विशेष ख्याति नहीं मिली। किन्तु फ्राँस एवं विश्व के संबंध में की गई भविष्य वाणियों में से अधिकांश के सार्थक सिद्ध होने पर मरणोपरान्त उन्हें अभूत पूर्व प्रसिद्धि मिली। नोस्ट्राडेमस की 4000 भविष्य वाणियों का संकलन “सेंचुरीज” नामक पुस्तक में कई खण्डों में प्रकाशित हुआ है। सेंचुरीज-इसलिए कि उसके प्रत्येक खण्ड में 100-100 भविष्य वाणियाँ ह। 18 वीं सदी से लेकर अब तक के उनके भविष्य कथन समयानुसार सही उतरे है। उन्होंने सतयुग के आगमन से पूर्व तीन महाशक्तियों के अवतरण की चर्चा अपनी भविष्य वाणियों में की थी, ये है प्रथम नैपोलियन, द्वितीय हिटलर एवं तृतीय जो अब संभावित है एण्टी क्राइस्ट। यह सब वे नैपोलियन के जन्म से पूर्व ही लिख चुके थे। उनका मत था कि प्रथम दानों शक्तियाँ विश्व की परिवर्तनकारी एवं विनाशकारी हलचलों में महत्वपूर्ण भूमिकायें निभायेंगी। किन्तु अंततः जीत लोकमत की होगी। नैपोलियन के बारे में उन्होंने लिखा था कि इटली और फ्राँस की सीमा पर स्थित एक सामान्य परिवार में जन्मा एक बालक विश्व का सबसे बड़ा तानाशाह सम्राट बनेगा। साम्राज्यवादी विस्तार के लिए अमानवीय पुरुषार्थ करेगा किन्तु जीवन के उत्तरार्ध काल में उसे हेलेना नामक द्वीप में बन्दी का जीवन जीते हुए मृत्यु का वरण करना होगा। इतिहास में रुचि रखने वाले भली भांति जानते है कि यह सब घटनाएँ सच होकर रहीं। एक और आश्चर्य की बात यह है कि नोस्ट्राडेमस अपने जीवन काल में ही 1878 में सर्वसम्मत ईसाइयों के धर्म गुरु पोप का पद ग्रहण करने वाले व्यक्ति को पहचान चुके थे एवं उसकी घोषणा भी कर चुके थे।

हिटलर के निरंकुश शासक होने के रूप में उदित होने का उल्लेख भी सेंचुरीज में है। चार पंक्तियों के पद्यरूप में लिखी गई ये भविष्यवाणियाँ इस दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है कि हिटलर के जन्म से लगभग 380 वर्ष पूर्व इस दिव्य द्रष्टा ऋषि, ने थर्ड राइक, के नाम से उसके अमुक स्थान पर जन्म लेने, क्रमशः योरोप को दबोचने और इटली की मदद से नस्लवाद के सहारे सारे विश्व पर आधिपत्य जमाने के दुस्साहस की चर्चा की हैं नोस्ट्राडेमस हिटलर के अभ्युदय एवं पराजय-दोनों का ही इतिहास लिख गये थे। वे लिखे गए थे कि आग्नेयास्त्रों एवं विध्वंसक-महाविनाशक बमों के प्रहार से व्यापक विभीषिका का दृश्य खड़ा होगा तथा इसका समापन विश्व के पूर्वी क्षेत्र में स्थित जापान में संभावित एक संहार लीला से होगा। निश्चित ही यह संकेत हिरोशिमा और नागाशाकी पर संयुक्त सेनाओं द्वारा डाले गये परमाणु बमों की ओर था। इंग्लैंड के राजा एडवर्ड अष्टम का सिंहासन त्याग एवं राष्ट्र से निष्कासन, मुस्लिम राष्ट्रों में आँतरिक विग्रह पैदा होकर व्यापक विनाश, बीसवीं शताब्दी के अंतिम दो दशकों में बुद्धिवाद की चरम प्रगति, विज्ञान जगत में नवीनतम आविष्कार, प्रकृति के साथ छेड़ छाड़ करने से उत्पन्न दैवी प्रकोपों के घटाटोपों की घहराना तथा अंततः एशिया से मानव जाति के उज्ज्वल भविष्य के निर्धारण हेतु एक प्रचण्ड शक्ति का प्रादुर्भूत होना ये कुछ ऐसी भविष्य वाणियाँ है जो उनकी पुस्तक, सेंचुरीज एवं उसी पर आधारित एक समीक्षा-”द फ्यूचर आफ ह्ममेनिटी” में वर्णित है।

नोस्ट्राडेमस अपनी मृत्यु (सन् 1881) से पूर्व ही सन् 2037 की अवधि तक की भविष्य वाणियाँ कर चुके थे। उनकी हस्त लिखित पुस्तक को आक्सफोर्ढ की 17 वर्षीय छात्रा ऐरिका ने पुस्तकालय में से ढूँढ़ निकाला और पाया कि इसमें जो कुछ भी खा है वह सब या तो वास्तव में घटित हो चुका है अथवा आने वाले भविष्य के बारे में है। ऐरिका के अतिरिक्त 80 से भी अधिक विद्वानों ने “सेंचुरीज” का विषद अध्ययन किया है उन्होंने लिखा है कि तीसरी महाशक्ति एण्टीक्राइस्ट जिसको नोस्ट्राडेमस ने सतयुग के आगमन से पूर्व कलियुग की असुरता का चरमोत्कर्ष कहा है, की प्रभाव परिधि से ही विश्व इन दिनों घिरा हुआ है। विद्वत जन यह लिखते है कि कि नोस्ट्राडेमस उज्ज्वल भविष्य में विश्वास रखते थे। काव्यबद्ध “सेंचुरीज” का अध्ययन करने पर जो निष्कर्ष निकले है, वह बताते है कि संकट और चुनौती से भरे इस काल खण्ड में एक नयी आध्यात्मिक चेतना का उदय होगा जो सन् 1111 तक अपनी विकास यात्रा के चरम शिखर पर होगी। यह चेतना एशिया के भारत, चीन एवं जापान जैसे राष्ट्रों से उदित होगी तथा सारे विश्व को अपने लपेट में ले होगी। धर्म और विज्ञान का मिलन होगा। आध्यात्मिक अनुशासनों को वैज्ञानिक मान्यता मिलेगी एवं वैज्ञानिक निर्धारणों को आध्यात्मिक दिशा प्राप्त होगी। इससे संहार की संभावनाएँ समाप्त होगी और एक नये युग का सूत्रपात होगा। जिसे उन्होंने-”एज आफ दु्रथ” का नाम दिया। एण्टी क्राइस्ट अर्थात् मानवी दुर्बुद्धि विश्व सभ्यता को नष्ट नहीं कर सकेगी। साँस्कृतिक पूँजी से अभिपूरित भारतवर्ष एक महाशक्ति के रूप में अवतरित होगा जो एकता एवं समता से भरे नवयुग की प्रतिष्ठापना करेगा। वे अपनी अलंकारित भाषा में (क्वार्टन 16, भाग 10 सेंचुरीज में) लिखते है कि तीन ओर से सागर से घिरे धर्म प्रधान सबसे प्राचीन संस्कृति वाले एक प्रायद्वीप से वह विचार धारा निस्सृत होगी जो विश्व को विनाश के रास्ते से विरत कर विकास की ओर ले जायगी। सतयुगी संभावनाओं को साकार करेगी।

भविष्यवाणी के भाष्यकर्ता का मत है कि नोस्ट्राडेमस ने जिस सागर का उल्लेख किया है वह भारत के दक्षिण में स्थित विशाल हिन्द महासागर है। इसका नाम “हिन्द अर्थात् बृहत्तर भारत के नाम पर ही पड़ा है। नोस्ट्राडेमस ने “गे्रटचायरन” नाम से एक नेतृत्व के इस देश से उभरने की बात कही है जो कि मूलतः विचार प्रवाह के रूप में होगा। यह विचार प्रवाह समस्त विश्व में क्रान्ति ला देगा और जो भी परिवर्तन आज असंभव नजर आ रहा है, उसे संभावना में बदल देगा।

नोस्ट्राडेमस ने अपनी कृति में लगभग दो हजार से अधिक घटनाओं के घटित होने का उल्लेख किया है। यू0 सी0 एल॰ अमेरिका में व्याख्याता एवं सुप्रसिद्ध भविष्य विज्ञानी स्टीवर्ट रोब ने इस भविष्य वाणियों का बड़ी गंभीरता से अध्ययन किया है। उनके अनुसार अमेरिका जब वीरान था, रेड इन्डियन्स ही आदिवासियों के रूप में वहाँ विद्यमान थे, तब नोस्ट्राडेमस द्वारा यह कहा जाना कि इस वीरान क्षेत्र में एक विकसित सभ्यता का उदय होगा। सचमुच हतप्रभ कर देने वाला एक तथ्य है। इंग्लैंड, ग्रेट ब्रिटिश एम्पायर के जहाँ कभी सूर्य नहीं अस्त होता था, क्रमशः सिकुड़ कर एक छोटे से द्वीप तक सीमित रह जाने जैसी असंभव बात भी वे अपने दिव्य दर्शन के आधार पर चार शताब्दियों पूर्व लिख चुके थे। 20 वीं सदी के वैज्ञानिक आविष्कार, अंतरिक्ष धरती एवं समुद्र पर की जाने वाली यात्राएँ, भूगर्भ तथा ब्रह्माण्ड की खोज जैसे प्रकरणों की चर्चा भी वे 18 वी शताब्दी में लिख गये थे।

अभी तक अगणित विद्वानों ने नोस्ट्राडेमस के भविष्य कथन पर आधारित भविष्य की संभावनाओं का विश्लेषण विवेचन किया है। सभी एक मत से यह मानते है कि प्रस्तुत समय परिवर्तन की बेला है। युद्ध हिंसा और अनैतिकता का ताँडव नृत्य क्रमशः निरस्त होगा। दैवी प्रकोप व्यक्ति को सन्मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित एवं बाध्य करेगा। इक्कीसवीं सदी एक ऐसे उज्ज्वल भविष्य को लेकर आयेगी जिसमें सभी सुख शाँति से रह सकेंगे। भेदभाव समाप्त होंगे और सारे विश्व की व्यवस्था एकतंत्र के अंतर्गत चलेगी। निश्चय ही इसमें भारत की सबसे महत्वपूर्ण भूमिका होगी।


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