समझौता तब हो सका (Kahani)

March 1989

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एक भूत ने किसी आदमी पर सवारी गाँठी। उससे दिन भर काम लेता। भूखा रखता और जब तक पिटाई भी कर लेता।

जब तक ....चलता रहा चलता रहा। एक हैरान होकर मनुष्य ने हिम्मत दिखाई और काम करने से मना कर दिया। रोज−रोज इस तरह दुःखी होने की अपेक्षा तो मरना अच्छा। आप खुशी से मार डालिये। पर मैं इस प्रकार काम न करूंगा। गतिरोध उत्पन्न हो गया।

भूत समझदार था। एक बार में इसे खा लेने से काम क्या चलेगा। काम का आदमी हैं। बीस काम आते है इससे राजीनामा कर लेना ही ठीक है। उसने कहा भाई! अब तुम्हारी जितनी मर्जी होगी उतना ही काम करना और भरपेट भोजन दिया करूंगा।

यह समझौता तब हो सका। जब आदमी तन कर बैठा और हिम्मत दिखाई। चुपचाप व्यस्त रहता तो ऐसे ही बेमौत मरता।


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