देवताओं पर संकट आया। दैत्यों ने उन्हें परास्त कर दिया। वृत्रासुर के नेतृत्व में दैत्य समुदाय हर दृष्टि में तगड़ा पड़ता था।
विष्णु के पास देवगण गये तो उनने कहा। सब से अधिक शक्तिशाली तप होता है जिसके कण कण में तप रम गया हो ऐसे ऋषि की अस्थियों का वज्र बन सके और उसका प्रहार दैत्यों पर हो सके तो देव समुदाय को विजय मिले।
ऐसे तपस्वी उन दिनों मात्र दधीचि थे। देवता उनकी तपस्थली पर अस्थि याचना के लिए पहुँचे। ऋषि ने अपनी दिव्य दृष्टि से उनका मनोरथ जान लिया। बिना माँगे ही दिव्य प्रयोजन के लिए अपना प्राणदान देना स्वभाग्य माना और देखते देखते प्राण त्याग दिये। उनकी अस्थियों से इन्द्र वज्र बना देवता जीते। सबने जाना कि तपस्वी की अस्थि कितनी प्रबल प्रचंड होती है।