विभिन्न योगाभ्यासों के अंतर्गत स्पर्श साधना को, तन्मात्राओं की सिद्धि को विशेष महत्व दिया गया है। स्थूल संरचना की दृष्टि से ही जब त्वचा इतनी विलक्षण है कि उसका वर्णन हमें हतप्रभ कर देता है तो उसके सूक्ष्म एवं कारण पक्षों का विकास मनुष्य को अनेकानेक ऋद्धि सिद्धियाँ प्रदान करता है।भय की परिणति बताते हुए एक ऋषि अपने शिष्यों को उसकी भयंकरता एवं परिणति समझा रहे थे। उदाहरण के रूप में कह रहे थे कि आसमान ऊपर से न टूट पड़े इस भय से गिलहरी ऊपर को पैर करके सोती है ताकि वह गिरे तो पैरों पर उसे समेट कर अपना बचाव कर सके। बन्दर पेड़ से बार-बार नीचे उतरता रहता है कि कही धरती नीचे तो नहीं खिसक रही। केंचुआ इसलिए मिट्टी खाता है कि संसार में अनाज उपजना कम हो गया तो भी भूखों मरना पड़ सकता है। इसलिए समय रहते मिट्टी खाने की आदत डाल कर अपने को सुरक्षित क्यों न बना ले। भय की हड़बड़ाहट में प्राणी अनुपयुक्त सोचता और करता हैं।