ईसा शिष्य मंडली के बीच विराजमान थे। उस दिन उनने एक किसान के बीज बोने की कथा सुनाई जिसमें से थोड़े ही उगे और सब नष्ट हो गये। कुछ दानों को चिड़ियों ने चुग लिया। कुछ कड़ी धूप से झुलस गये।
कुछ कीचड़ में सड़े और कुछ झाड़ियों के बीच पड़ने से धूप रोशनी न मिलने से उगे ही नहीं। थोड़े से वे पौधे ही बढ़े और फले जो उपयुक्त भूमि पर बोये और सावधानी के साथ सीधे रखाये गये थे।
ईसा ने कहा उपदेश और पूजा भी फलित होती है जब साधक का चरित्र और चिन्तन भी उपयुक्त स्थिति में रहे और अनुकूलता उत्पन्न करने में योगदान करें।