अन्धविश्वास और अहंकार ने मिलजुल कर ठान ठानी कि कुछ ही समय में सारे संसार की विचारशीलता को अपने कब्जे में कर लेंगे और एक छत्र राज्य करेंगे।
इच्छित गति से प्रगति न हो सकी ता वे पर्वत शिखर पर सोये एक शक्ति शाली देवता की साधना करने लगे। मनोरथ, जगाकर भर पूरा सहायता पाने और जल्दी सिद्धि पाने का था।
कठिन साधना से प्रभावित होकर देवता जागा। दोनों साधकों का मनोरथ पूछा। जानने पर वह खिलखिला कर हँस पड़ा। बोला- तुमसे पहचानने में भूल हुई। मेरा ना विवेक है। मेरे जग पड़ने पर तुम दोनों का अस्तित्व ही शेष न रहेगा।
सकपकाये साधकों ने कहा - पहला निवेदन यदि आपको रुचा नहीं तो कृपया फिर गहरी नींद में सो जाइये, ताकि हम देर सबेर से चक्रवर्ती बनने का मनोरथ अपने बलबूते पूरा कर सके।