सफलता किनके कदम चूमती है?

October 1987

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

बुद्धिमत्ता की वर्णमाला संसार रूपी पाठशाला में आकर सीखी जाती हैं जितने भी व्यक्ति आगे चलकर बड़े विद्वान, वैज्ञानिक, मनीषी, बने है, जरूरी नहीं कि जन्म से ही ऐसे रहे हों। अनुवाँशिकता एवं माता द्वारा गर्भकाल में दिए गए रहे हों। आनुवाँशिकता एवं माता द्वारा गर्भकाल में दिए गए संस्कारों की अपनी महत्ता है। वह अपनी जगह अक्षुण्ण रहेगी। जब तक भरत व लव−कुश के साथ शकुन्तला व जानकी का नाम लिया जाता रहेगा, यह तथ्य अपनी जगह अटल रहेगा। किन्तु यह नहीं भूलना चाहिए की वरदराज, गोपमाल, कालिदास जैसे उद्घट विद्वान भी इस देश में हुए है जिन्हें प्रारम्भ में मूर्ख, ढपोलशंख, बेवकूफ क्या क्या नहीं कहा गया। किन्तु अध्यवसाय एवं साधना पुरुषार्थ के बलबूते उन्होंने “इडियट” से “जीनियस” बनकर दिखा दिया। यह विशेषता मनुष्य के साथ ही है कि वह जो चाहे, वह बन सकता है। न केवल यह स्वतंत्रता विधाता ने उसे दी है, वरन् ऐसे साधन, अवसर, परिस्थितियाँ भी दी है जिनका समुचित सदुपयोग-सुनियोजन कर वह क्या से क्या बन सकता है।

कोई जरूरी नहीं कि हर महामानव या प्रतिभावान का मूल्याँकन स्वतः हो जाये व जनता उसकी जय-जयकार करने लगे। यह एक समयसाध्य प्रक्रिया है। यदि व्यक्ति प्रारम्भिक उपहास-निंदा व प्रताड़ना से क्षुब्ध हो, निराश हो प्रगति पथ की यात्रा बीच में छोड़ दे तो वह उस सौभाग्य से वंचित हो सकता है, जो कदाचित उसे प्रयास-पुरुषार्थ जारी रखने पर मिलता। धीरज एवं सतत् अध्यवसाय एक ऐसा गुण है, जो बिरलों में पाया जाता है, किन्तु इसी के बलबूते व परिस्थितियों को अपने अनुकूल बना पाने, वाँछित सफलताएँ हस्तगत करने में सफल हो जाते हैं। सफलता का यह मूलमंत्र है एवं इसकी साक्षी उन व्यक्तियों के जीवन-क्रय से मिली है, जो प्रारम्भ में साधारण से व्यक्ति थे, किन्तु बाद में इतिहास में अपना स्थान बना गए।

टेनीसन पाश्चात्य जगत के प्रसिद्ध कवि हुए है। जब उन्होंने अपनी कविताओं को एक प्रसिद्ध पत्रिकाओं के सम्पादक को दिखाया तो उनकी खूब हँसी उड़ायी गयी। उनके पितामह ने उनका मन रखने के लिए उन्हें 10 शिलिंग दिए किन्तु साथ ही यह भी कह दिया था “यह पहली व अंतिम कमाई है, जो तम अपनी तथाकथित रचनाओं के बदले पा रहे हो और मेरी बात ध्यान से सुन लो- पढ़ाई में मन लगाओ व कुछ बनने का प्रयास करो। किंतु बाद में यही प्रारम्भिक कविताएँ विद्वानों के लिए शोध का विषय बन गयी। कि कैसे इतनी सुन्दर रचना एक किशोर ने अपनी कल्पना शक्ति से रची?

“फ्रेजर्स मेगजीन” के सम्पादक को एडवर्ड फिट् जगराल्ड ने अपनी कविताओं की पाण्डुलिपि लाकर दी, जिसका नाम “उमरखैयाम की रुबाईयाँ” था उन्होंने न केवल उनकी हँसी उड़ाई, बल्कि चौकीदारों से बाहर खदेड़वा दिया। एडवर्ड निराश नहीं हुए। उन्होंने कुछ पैसे उधार लेकर उसे छपवाया। जब वह किताब आधे क्राउन में भी नहीं बिकी, उन्होंने उसकी कीमत घटाकर एक शिलिंग कर दी। फिर भी न बिकने पर उन्होंने एक कबाड़ी के यहाँ कुछ प्रतियाँ प्रसिद्धि प्राप्त साहित्यकार राँसेटी, स्वाइन बर्न एवं सर रिचार्ड बर्टन के पास पहुँची तो उन्होंने इस छिपी प्रतिभा को पहचाना। इसके बाद उन्होंने कभी मुड़कर नहीं देखा।

कार्लमार्क्स शायद फुटपाथ पर सोते- श्रमिक की तरह जीवन काटकर इस दुनिया से चले जाते, यदि उन्हें अपनी बचपन की मित्र एवं बाद में जीवन संगिनी जेनीवाँन वेस्टफाँलेन का सान न मिला होता। उसने न केवल उनकी हर विपत्ति में साथ दिया, उनकी प्रतिभा को पहचाना व सतत् प्रेरणा देते रहने का काम किया, जिससे वे “डास कैपीटेल” जैसी रचना विनिर्मित कर सकें। स्वयं अमीर घर की होते हुए भी उसने गरीब किन्तु प्रतिभावान, पुरुषार्थ अपने पति के साथ प्रतिकूल परिस्थितियों में जीना पसंद किया और यही से जन्मा अर्थशास्त्र का दर्श, जिसने बाद में विश्व की आधी से अधिक जनसंख्या को प्रभावित किया।

सुप्रसिद्ध वैज्ञानिक एडीसन (जो तब तक अच्छी खासी ख्याति प्राप्त कर चुके थे) एक नया प्रोजेक्ट आरम्भ करने के लिए बैंक से कर्ज लेना चाहते थे। किन्तु जब उन्होंने बैंकर को बताया कि इस प्रयोग से कुछ निष्कर्ष निकलेगा या नहीं, यह दो वर्ष बाद ही कहा जा सकता है, तो उन्हें बाहर जाने का रास्ता दिखा दिया गया। फिर भी सीमित साधनों से उन्होंने वह काम आरम्भ कर दिया एवं सफल हुए।

बेजामिन डिजराईली को महानता की चरम स्थिति पर पहुँचने के लिए अच्छा-खासा संघर्ष करना पड़ा। वे पार्लियामेण्ट का चुनाव लगातार तीन बार हारे। जब चौथी बार सफल हुए व अपना पहला भाषण आरम्भ किया, उनकी खूब खिंचाई हुई व हँसी उड़ाई गई। अन्य सदस्यों ने उन पर जमकर व्यंग्य किया। वे जोर से चीखे- “एक समय ऐसा आएगा, जब आप सब को मुझे सुनना पड़ेगा” और ऐसा ही हुआ भी। इसे कहते हैं जीवट एवं आत्म विश्वास।

सफलता संघर्षशीलों की चेरी है। जो जीवन-संग्राम में लड़ नहीं सकता, वह आगे नहीं बढ़ सकता। हर महामानव का जीवनक्रम यही बताता है कि स्थायी यश एवं कीर्ति उन्हें ही हस्तगत हुई जो निरन्तर लक्ष्य प्राप्ति हेतु लगे रहे। डेनियल बेब्सटर जिनके शब्दकोश आज सारे विश्व में प्रचलित है, अपना पहला शब्दकोश 36 वर्ष में पुरा कर सके। बीच में अनेक व्यवधान आए, कइयों ने उन्हें मूर्ख भी कहा, पर वे पीछे न हटे। अनन्तः सफलता हाथ लगी। माईकेल एंजेलों के वेटीकन स्थित चर्च में बने चित्र विश्व विख्यात है। सिस्टीन चैपेल की छत व ऊँची दीवारों पर उल्टा लेटे पेटिंग करते करत उन्हें पूरा करने में उन्हें पूरे सात वर्ष लगे। पर जो काम एंजेलो कर गए वह एक कीर्तिमान बन गया। इसे देखने विश्व भर से लोग आते हैं व कलाकृतियों की सजीवता देखकर भूरि-भूरि सराहना करते है। “डिक्लाईन एण्ड फाँल ऑफ रोमन एम्पायर” नामक विश्व प्रसिद्ध ऐतिहासिक ग्रंथ गिब्बन द्वारा पूरे बीस वर्ष में लिखा गया था। वस्तुतः बिना कड़े परिश्रम-अध्यवसाय के महत्वपूर्ण उपलब्धियाँ मिलती भी नहीं। बीथोवन दोनों कानों से बहरे थे, पर संगीतज्ञ उच्चकोटि के थे। अपनी सर्वप्रसिद्ध संगीत -धुन को उन्होंने कम से कम एक दर्जन बार बारम्बार लिखा व बनाया। अन्ततः जो नवनीत निकल कर आया, वह सर्वोच्च कोटि का था।

जार्ज लुई बोर्जेज जिन्हें अर्जेन्टीना का राष्ट्रकवि कहा जाता है, जन्मजात अंधे थे, पर कविता रचने से उन्हें इस अपंगता ने नहीं रोका। लुई ब्रेल जिन्होंने अंधों के लिए लिपि बनायी स्वयं तीन वर्ष की उम्र में नेत्र दृष्टि खो चुके थे। हेलनकीलर दो वर्ष की आयु में ही गूँगी व बहरी हो गयी थी पर क्या प्रगति पथ पर यह विकलाँगता उनकी बाधक बनी। जोसेफ पुलित्जर जिनके नाम पर पत्रकारिता का पुरस्कार दिया जाता है, 40 वर्ष की उम्र में अंधे हो गये थे। पर जिस महत्वपूर्ण उपलब्धि के लिए उन्हें पत्रकारिता का प्रणेता माना जाता रहा है, वह उन्होंने 40 वर्ष बाद ही प्राप्त की।

बहुत से ऐसे व्यक्ति हुए है जिन्हें सम्मान, राशि आयुष्य के उत्तरार्ध में मिली, पर इससे उनकी साधना में कोई व्यवधान नहीं आया। जार्ज बर्नार्डशा को सबसे बड़ा सम्मान नोबुल पुरस्कार सत्तर वर्ष की आयु में जाकर मिला। इकहत्तर वर्ष की आयु में माक्रट्वेन ने अपनी दो सबसे ख्याति प्राप्त रचनाएँ “इव्सडायर” एवं डालर तीस हजार बिक्वेस्ट” रची थी। इस शृंखला में पण्डित दामोदर सातवलेकर जी का नाम भी लिया जा सकता है। जो शताधिक जिए व पिचहत्तर वर्ष की आयु के बाद जिनने आर्ष ग्रन्थों का भाष्य आरम्भ किया।

असफलता का रोना रोने वाले इन महामानवों का जीवनक्रम क्यों नहीं देखते? हर व्यक्ति यदि पुरुषार्थ पारायण हो तो जिस क्षेत्र में चाहे सफलता प्राप्त कर सकता है। भाग्य लिखा हुआ नहीं आता, बनाया जाता है। बनाने हेतु पुरुषार्थ, लगन, अध्यवसाय चाहिए।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles






Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118