लोमड़ी (Kahani)

October 1987

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भोर हुआ तो लोमड़ी आंखें मलती हुई उठी। पूँछ उसकी उगते सूरज की ओर थी। छाया सामने पड़ रही थी। अपनी लम्बाई और ऊँचाई देखकर लोमड़ी को अपने असली स्वरूप का आभास आज पहली बार हुआ था।

सोचने लगी वह बहुत बड़ी है। इतनी बड़ी कि समूचे हाथी के बिना उसका पेड़ भरेगा नहीं। सो हाथी का शिकार करने वह घने जंगल में घुसती चली गई। भूख जोरों से लग रही थी। पर छोटी खुराक से काम क्या चलता। उसे हाथी पछाड़ने की सनक सवार थी।

भूखी लोमड़ी भाग दौड़ में थक-थक कर चूर चूर हो गई। तब तक दोपहर भी हो गई। सुस्ताने के लिए वह जमीन पर बैठी तो उसका सारा नजारा ही बदल चुका था। छाया सिमटकर पेड़ से नीचे जा छिपी थी।

इस नई असलियत को देखकर लोमड़ी की चिन्ता बदल गई, वह सोचने लगी इतने छोटे आकार के लिए तो एक छोटी मेंढकी भी बहुत है।


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