सम्पदा और उसका अनर्थकारी प्रलोभन

October 1987

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एक साधक ने तंत्र साधना की और अपने गुरु से यह विद्या सीख ली कि नियत नक्षत्र आने पर आकाश से रत्नवर्षा कराई जा सके और विपुल धन सहज ही प्राप्त किया जा सके। सफलता मिलने के बाद वह ठाट-बाट से रहने लगा।

एक दिन वह साधन वन मार्ग से किसी दूसरे प्रदेश को जा रहा था कि रास्ते में चोरों के समुदाय ने उसे पकड़ लिया और कहा- “तुम्हारे वस्त्राभूषण सम्पन्नों के से मालूम पड़ते हैं। जो कुछ पास है उसे तो निकाल कर यहाँ रखो ही, साथ ही अपनी दौलत का अता पता बताओ ताकि उसे भी हम लूट कर ला सकें। जब तक इतना काम नहीं हो जाता तब तक तुम्हें पेड़ से बाँध कर रखेंगे और कुछ अतिरिक्त हाथ न लगा तो तुम्हें मार देंगे।”

साधक बुरी तरह चंगुल में फंस गया। जो पास में था वह उतार कर रख ही दिया, पर चोरों को घर भेजकर परिवार की सारी सम्पदा लुटवा देने की बात गले न उतरी। अतएव उसे एक पेड़ से बाँध दिया गया। समय दिया कि एक सप्ताह के भीतर कुछ न मिला तो फिर उसका अन्त ही कर दिया जायगा।

प्राण जाने की चिन्ता में वह बहुत दुःखी रहने लगा। इतने में एक बात उसकी समझ में आई कि कल ही तो रत्न वर्षा ने वाला नक्षत्र है। क्यों न एक प्रयोग इन्हीं लोगों के लिए कर दिया जाए और विपुल धन लाभ करा कर अपना छुटकारा पा लिया जाय।

उसने डाकुओं को समीप बुलाया और सारी रहस्य वार्ता कह सुनाई। वह ताँत्रिक है। कल वह नक्षत्र है जिसमें मंत्र शक्ति से रत्न बरसाये जा सकते हैं। उसे छोड़ दिया जाय और आवश्यक पूजा करने की छूट दे दी जाय। कल आकाश में रात के समय रत्न बरसेंगे उन्हें वे लोग ले लें। बदले में उसे बंधन मुक्त कर दें, डाकू इस पर सहमत हो गये और उसके बंधन खोल दिये। आवश्यक पूजा-अर्चा करने के लिए जो साधन जरूरी थे, वे मँगा दिये। साधना सही थी। दूसरे दिन रात को रत्न बरसे। डाकुओं ने उन्हें बटोरा और निहाल हो गये। शर्त के अनुसार उसे छुटकारा भी दे दिया। लूटे गये वस्त्र, आभूषण भी लौटा दिये।

साधक ने इस विपत्ति से छुटकारा पाने पर ठण्डी साँस ली और आगे के रास्ते पर चल पड़ा। डस डाकू समुदाय का सरगना बहुत चतुर था। मार्ग में जो और डाकू मिले उन्हें साथ लेकर गया उपयुक्त निर्जन स्थान देखकर उन लोगों ने साधक को फिर पकड़ लिया और अगली रात फिर रत्न वर्षा करा देने का आदेश दिया। आनाकानी करने पर, जान जाने की बात भी स्पष्ट कर दी।

साधक पथिक ने रुआँसे होकर कहा- ऐसा नक्षत्र तो अब एक वर्ष बाद आयेगा। तब तक के लिए आप ठहरें। मैं लौटकर उस समय वह लाभ दिला दूँगा। अभी तो दया कर मुझे जाने दें। “

डाकुओं को उसकी बात पर विश्वास न हुआ, कैद कर लिया और रत्न वर्षा कल न करने पर जान जाने की बात बाद-बार याद दिलाते रहे। उन्हें एक वर्ष बाद नक्षत्र आने की बात पर विश्वास न हुआ। उस कथन को टालने का बहाना मात्र समझते रहे। निदान दूसरी रात प्रतीक्षा में देखी गई। रत्न वर्षा न करा सकने पर साधक की गरदन काट दी गई।


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