बेंगलोर की शोध संस्था “इसरो” (इंडियन स्पेस रिसर्च आर्गनाइजेशन) ने टेलीविजन एण्टीना का काम लम्बे छायादार पेड़ों से लेना आरम्भ किया है। बिजली के तार लगाकर आमतौर से टेलीविजन एण्टीना लगाये जाते हैं। पर उक्त संस्थान की खोज के अनुसार वही काम ऊँचे पेड़ों की पत्तियों से लिया जा सकता है। जड़ों के पास टेलीविजन रखकर उसका सम्बन्ध पेड़ से जोड़ दिया जाये, तो टेलीविजन पर वैसे ही चित्र आने लगते हैं, जैसे कि विधिवत् बनाये रखे एण्टीना से आते हैं।
इस आधार पर यह संभावना बनती है कि बड़े पेड़ों की छाया में बैठकर अन्तरिक्ष में दौड़ने वाले अनेक उपयोगी मस्तिष्क के लिए प्रयुक्त किया जा सकता है। सिद्धियों में दूरदर्शन, दूरश्रवण की सिद्धियाँ भी हैं इन्हें प्राप्त करने के लिए लम्बे आकार के पेड़ों में खजूर, देवदार जैसे वृक्षों के नीचे बैठकर योगाभ्यास करने से उन सिद्धियों को सरलतापूर्वक प्राप्त किया जा सकता है, जो खुले स्थानों में या झाड़ियों में बैठकर मुश्किल से हस्तगत होती है संभवतः इसी कारण ऋषिगण सघन वृक्षों के मध्य तप साधना करते थे।
वृक्षों की समीपता का एक सर्वविदित लाभ ऑक्सीजन की उपलब्धि है। पेड़ों का प्रत्यक्ष लाभ यह भी है कि उनकी समीपता से प्रदूषण की निवृत्ति होती है। दूषित वायु को ग्रहण करने और उसके स्थान पर स्वच्छ वायु प्रदान करने का गुण पेड़ों में है। इसलिए पेड़ों के नीचे झोंपड़े बनाकर उनकी छाया में रहने का एक बड़ा लाभ प्राचीनकाल में प्राप्त किया जाता था।
मानसिक विशेषताएँ बढ़ाने एवं मनोविकार दूर की भी कई वृक्षों से अपनी विशेषताएँ है। यज्ञ प्रयोजन में कुछ पेड़ों को समिधाएँ काम आती है। यज्ञ के काष्ठ पात्र भी इसी दृष्टि से चुने जाते हैं कि इनका काष्ठ उपयोग में लाने से मानसिक शुद्धि का विशेष लाभ होता है।
योगाभ्यास के आत्म-कल्याण के लिए कुछ विशेष वृक्षों की छाया का उपयोग उपयुक्त माना गया है। कई सिद्धियाँ प्राप्त करने के लिए उस प्रकार का साधना अमुक वृक्ष के नीचे की जाती है। इसके पीछे उन विशेषताओं का समावेश होना चाहिए, जिनका आज के वैज्ञानिक एण्टीना में उपयोग करने लगे है। यह एक प्रकार की बिजली की अधिक मात्रा का उन पेड़ों में होना है। हर पेड़ में यह विशेषता नहीं होती। कुछ विशेष वृक्षों में भी यही विशेषता पायी जाती है।
जन संकुल क्षेत्र में रहकर साधनाएँ उतनी सफल नहीं हो पाती। कारण इसमें तरह तरह के लोगों से मिलते रहने से चित्तवृत्तियाँ अस्थिर होती है।, उनमें भटकाव आता है और एकाग्रता भंग होती है। यद्यपि ऐसी परिस्थितियां नदी सरोवर के एकान्त, शाँत तट पर भी रह कर उपलब्ध की जा सकती है, किन्तु वहाँ रहकर साधक वन्य प्रदेश का एक महत्वपूर्ण लाभ-वृक्षों में रहकर लम्बे काल में भी उतनी सफल नहीं हो पाती, वैसी साधनाएँ पेड़ों के संपर्क में अपेक्षाकृत कम काल में फलीभूत होती देखी जाती है। इसका कारण वृक्षों में संव्याप्त विद्युत ही है।
सर्वविदित है- पक्षीगण पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र के कारण ही दिशा-ज्ञान करने में सफल हो पाते हैं। प्रयोगों के दौरान जब उन्हें इस तत्व (चुम्बकीय तत्त्व) से रहित क्षेत्र में रखा गया, तो वे दिशा बोध करने के विफल रहे, किन्तु जैसे ही भू-चुम्बकीय क्षेत्र में लाया गया,उनके संवेदी अंग पुनः सक्रिय हो उठे और दिशा-ज्ञान प्राप्त करने में सफल हुए। ऐसा ही लाभ पेड़ों के विद्युतीय क्षेत्र से साधक को मिलता है। इस विज्ञान को यदि भली प्रकार समझा जा सके तो आध्यात्मिक महत्व के कितने ही लाभ वृक्षों की सहायता से प्राप्त किये जा सकते हैं।