दैत्य भूल-भुलैयों वाले बड़े महल में रहता था उसके चार रत्नों का भण्डार था किसी सत्पात्र को उसे देना चाहता था। पर पहले उसकी कुशलता जाँच लेने का मन उसने बना लिया। इसकी घोषणा भी कर दी गई थी।
अनेकों इच्छुक आए, उस मल में घुसे पर भूल भुलैयों में भटक जाने के कारण न खजाने तक पहुँच सके न वापस लौट सकें। उसी गोरख धन्धे में फँसकर जान गँवाते रहे।
एक चतुर व्यक्ति ने बहुत लम्बा धागा लिया। उसका एक सिरा दरवाजे के बाहर बाँध दिया। धागे की पिण्डी खोलता हुआ आगे बढ़ता गया। सम्बल हाथ में रहने से वह भटका नहीं- उस धागे के सहारे ही बाहर निकल आया।
दैत्य को उसकी बुद्धिमानी बहुत भाई। सो धन के साथ ही अपने रूपवती बेटी ब्याह दी।
जीवन की डोर भगवान के द्वार से बाँधकर चलने वाला सिद्धि भी प्राप्त करता है और ऋद्धि भी, वह भटकता भी नहीं।