युद्ध के बाद ज्यूरिन में भयंकर अकाल पड़ा। साथ ही महामारियां भी फूट पड़ीं। इस आग से जूझने के लिए स्वयं सेवकों की जरूरत पड़ी।
ज्यूरिन के एक समाज सेवा पेवरिन ने पीड़ितों की सहायता के लिए एक सेवा समिति गठित की। स्वयं सेवकों के लिए मार्मिक अपील छपी।
इस पुकार को सुनकर एक नव विवाहित दम्पत्ति सामने आये थे। पति का नाम यूसो, पत्नी का सेर लाओ। वे सेवा का आवेदन लेकर आये थे।
पेवरिन ने कहा- यदि सच्चे अर्थों में सेवा करना है तो आप लोग बच्चे न जनने का व्रत लें। अन्यथा उस झंझट के कारण आप सच्चे मन और पूर समय तक लगन पूर्वक काम न करे सकेंगे। विचार करके दूसरे दिन आने के लिए उन्हें कहा गया।
पति पत्नी दूसरे दिन नियत समय पर सेवाधिकारी के पास पहुँचे। उनने बाइबिल हाथ में लेकर आजीवन बच्चे न जनने का और सदा सेवा धर्म में लगे रहने की प्रतिज्ञा की।
पेवरिन की आँखों में आँसू छलक आये। उन्होंने उस सच्चे व्रती दंपत्ति को हृदय खोलकर आशीर्वाद दिया और काम में जुटा दिया। उनके आदर्श ने अनेकों को प्रेरणा दी और वैसे ही व्रतधारी स्वयं सेवक एक हजार की संख्या में भर्ती हो गये।
विपत्ति से जूझने में इन सबने मोर्चा संभाला और लाखों के प्राण बचाये। यूसो दम्पत्ति का अग्रिम कदम उस क्षेत्र में अभी भी भावना पूर्वक स्मरण किया जाता है। उन दिनों भी उन्हें धर्म प्राणों से बढ़कर आदर मिला था।