अद्भुत, विलक्षण-हिमालय की यह पद यात्रा

October 1987

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

जितना विलक्षण विचित्र, लीलामय हिमालय का, हृदय उत्तराखण्ड क्षेत्र है, उतने ही विचित्र यहाँ के कुछ घटनाक्रम है। इनमें से एक है नन्दादेवी की अद्भुत पद यात्रा जो 200 किलोमीटर की होती है, दुर्गम मार्ग से होती हुई गुजरती है एवं जिनका नेतृत्व एक विचित्र मेढ़ा (नरभेड़ करता) करता है, जिसे स्थानीय भाषा में “चौसिंगिया खाडू” करते हैं। काले रंग का, चार सींग वाला यह मेढ़ा इसे विचित्र, “राजजात यात्रा” जो हर बाहर वर्षा के अन्तराल पर होती है, के समय की संगति के कुमायूँ-गढ़वाल क्षेत्र के किसी न किसी गाँव में जन्म ले लेता है। यात्रा का समापन जैसे होने लगता है, पूजन सामग्री अपनी पीठ पर लिए यह विचित्र जीव अदृश्य प्रेरणा से जन समूह को पीछे छोड़कर अकेला नंदा देवी शिखर की ओर बढ़ता हुआ अन्तर्ध्यान हो जाता है। वहां कहाँ चला जाता है? कोई नहीं जानता। यह यात्रा नौवीं शताब्दी से प्रारम्भ हुई, और अब तक सतत् चालू है। इसे भारतवर्ष की सबसे लम्बी धार्मिक पदयात्रा माना जाता है। यह यात्रा हिमालय के अति दुर्गम क्षेत्र में लगभग 200 किलोमीटर की दूरी तय करती है।

ताम्रपत्रों के आधार पर ज्ञात हुआ है कि ‘नन्दा’ गढ़वाल के राजा ‘कनक पाल’ की पुत्री थी। उन्हें अनेक प्रकार की सिद्धियाँ प्राप्त थी, जिनका वर्णन लोक कथाओं में आज भी घर घर होता है। नन्दा का मायका गढ़वाल के गाँव नौटी में था और ससुराल नन्दादेवी के नाम से विख्यात पर्वत पर। राजजात यात्रा नन्दा देवी के मैके से ससुराल तक यात्रा है। नन्दा देवी के डोले सहित यह यात्रा देवी को मैके से ससुराल पहुँचाने की परम्परा के रूप में की जाती है।

यात्रा के निर्धारित समय के पूर्व ‘चौसिंगिया खाडू’ जो कही न कहीं उसी क्षेत्र में पैदा हो चुका होता है, के जन्म की सूचना काँसुका गाँव में बसे राजघराने के व्यक्तियों को दी जाती है। यात्रा के पूर्व राजकुँवर और राजपुरोहित स्वयं उस गाँव तक जाते हैं जहाँ चौसिंगिया पैदा हुआ है उसे ‘छदोली’ (राज सी छतरी) के साथ सम्मानपूर्वक नौटी गाँव लाया जाता है। वहाँ निर्धारित मुहूर्त में उसका अभिषेक करके यात्रा प्रारम्भ की जाती है। हजारों की संख्या में नर नारी इसमें सम्मिलित होते हैं। मान्यता है कि राजजात यात्रा के बाद 12 वर्ष तक क्षेत्र में ऋद्धि-सिद्धियों की वृष्टि होती रहती है। वहाँ से निवासियों में सत्प्रवृत्तियाँ बनी रहती है।

ग्राम नौटी से नन्दा देवी तराई तक की यह यात्रा बड़ी दुर्गम है। वह भी भादो मास में होती है। भीषण वर्षा के बीच पहाड़ी दुर्गम पथ कितना खतरों से भरा है यह सब जानते हैं। अंतिम चरण में ‘बाण’ नामक गाँव से आगे 16200 फीट की ऊँचाई पर स्थित रूपकुण्ड तक की यात्रा तो नंगे पैर की जाती है।

यात्रा समाप्त होने पर देवी की पूजा करके पूजन की सामग्री चौसिंगिंया पर लाद दी जाती है। इसके बाद वह मूक पशु किसी अज्ञात प्रेरणा से स्वतः नंदादेवी शिखर की ओर बढ़ जाता है। चौसिंगिया की निर्धारित समय पर जन्म लेना, स्वतः पर्वत शिखर की ओर चल पड़ना तथा अनजान स्थान पर अंतर्ध्यान हो जाना आज भी एक रहस्य बना हुआ है।

हर बारहवें वर्ष यह निर्धारित यात्रा होती है। इस वर्ष अगस्त 87 से 17 तारीख को राजकुँवर एवं राजपुरोहित ग्वाड़ा ग्राम में पैदा हो चुके चौसिंगया को लेकर भव्य जुलूस के साथ नौटी गाँव पहुँचे होंगे। इन पंक्तियों के लिखे जाने तक इस यात्रा का शुभारम्भ हो गया होगा। यात्रा का समापन दिवस एक सितम्बर है जब विधिवत् पूजन के साथ नंदादेवी शिखर की तलहटी पर मेढे के अन्तर्ध्यान होने के साथ इसकी चरम परिणति हो चुकी होगी। इतना समय बीत गया, इस पर इस विचित्र प्रकरण का रहस्य कोई नहीं जान पाया।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles






Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118