ईमानदारी श्रम और उसका सही सदुपयोग (Kahani)

October 1987

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एक लगनशील मजूर था। कड़ी मेहनत करता और चार आने रोज कमा लेता घूमते हुए एक विद्वान ने पूछा-इस कमाई को खर्च किस प्रकार करते हों? यह बता सको तो तुम्हारी समझदारी का अनुमान लगाऊँ।

मजूर ने कहा - एक आने में अपना पेट भरता हूँ। एक आना उधार देता हूँ। उससे बच्चे पालता हूँ जो बड़े होने पर काम आवे। एक आने से कर्ज चुकाता हूँ ताकि ऋणी होकर न मरुँ। यह मेरे वृद्ध माता पिता की सेवा में लगते हैं। एक आना बचाता हूँ जो भविष्य में काम आवे अर्थात् धर्म कार्यों में लगा पैसा परलोक को सुखी बनाये।

ईमानदारी का श्रम और उसका सही सदुपयोग सुनकर प्रश्नकर्ता तत्त्वज्ञानी को बहुत प्रसन्नता हुई।


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